Tuesday 30th of April 2024 01:45:44 AM

Breaking News
  • बैंड बाजे के साथ विदाई करेंगे , अखिलेश यादव का बीजेपी पर वॉर , बोले – ये 2014 में आये थे 24 में चले जायेंगे |
  • सारण से रोहिणी आचार्य ने किया नामांकन , लालू भी रहे मौजूद |
  • दुबई दुनिया का सबसे बड़ा टर्मिनल बना | इसमें 400 गेट और पांच रन वे है |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 17 Sep 2023 11:00 AM |   1286 views

खेती में महिला श्रमिकों की भूमिका

महिला किसान शब्द कम सुनने को मिलेगा, महिला श्रमिक शब्द ज्यादा, इसलिये लेख की शुरुआत से लेकर अन्त तक यह लेख विशेष इन्ही के लिये। महिला श्रमिक सभी वक्त हरेक तरह की खेती में जरूरी मानी जाती हैँ बल्कि कुछेक तरह की खेती या उनसे जुड़े व्यवसाय में पुरुषो से भी ज्यादा।
 
उदाहरण के तौर पर धान रोपने, घास उखाड़ने और काटने के साथ ही साथ मानवीय श्रम वाले प्रोसेसिंग कार्यों सफाई, दाने अलग करना और पैकिंग करने जैसे कार्य शामिल हैँ| 
 
वजह है कभी भी पुरुषों के मुकाबले आधे श्रम में कार्य करने को राजी होना क्योंकि पुरुष श्रमिक ज्यादा मेहनत वाले काम, फावड़े चलाना, भारी वजन उठाना, ट्रेक्टर चलाना, मेढ़ बनाना, मशीने जैसे घास काटने वाली, रोटावेटर, सीडड्रिल जैसे भारी मशीने ट्रेक्टर से जोड़ना और खेती में थोड़ा ज्यादा टेक्निकल समझे जाना। ऐसा नहीं है कि पुरुष श्रमिक का अधिकार है सभी तरह की टेक्निकल समझी जाने वाली खेती, इसे महिलाओं ने स्वीकार होने दिया पीढ़ी दर पीढ़ी और ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कायम पड़ा हुआ है।
 
महिला श्रमिक खेती के काम से लौटने के बाद भी घर के काम करती हैँ और उसके पहले भी लेकिन पुरुषों के मामले में ऐसा नहीं होता। पुरुष श्रमिक खेत जाने से पहले थोड़े बहुत जानवर होने पर अधिकांशतः दूध दुहने या कुछ हद तक चारे सानी लगाने का कार्य करेंगे जबकि महिला श्रमिक गोबर उठाने, उपले पाथने तक का कार्य करती हैँ, इसके बाद गृहस्थी के सभी घरेलू कार्य में उन्हें शायद ही पुरुष श्रमिक परिवारों में मदद मिलती हो।
 
उस पर भी अगर नशे के आदी पुरुष उस परिवार में हों तो शाम को पुरुष की सही स्थिति में लौट आने और उससे भी ज्यादा अपने प्रताड़ित न होने की चिंता उन्हें लगी रहती है, सभ्य पुरुष आधारित श्रमिक परिवार इसके विपरीत बेहद खुशी से जीवन यापन कर ले जाते हैँ,सिवाय मौसमी बेरोजगारी के वक्त अगले दिन के रोजगार की चिंता  महिला आबादी को इस बात पर गर्व करना चाहिये कि पुरुष श्रमिकों के मुकाबले महिला श्रमिक में किसी नशे की लत बिल्कुल शून्य तो नहीं | लेकिन करीब करीब न के आसपास ही है (हल्के तम्बाकू जैसे नशे को छोड़कर-इनकी भी बेहद कम ही संख्या है)।
 
हालाँकि कुछेक वर्षो में महिला श्रमिकों की जागरूकता, शिक्षा स्तर और समझ बढ़ी है अनगिनत सामजिक प्रयासों, गैर सरकारी संगठन, व्यक्तिगत प्रयासों और कभी कभी परिस्थितियों वश सँग अपने आगे बढ़ने के प्रयासों से स्वयमेव।
 
महिला श्रमिक की एक मजबूरी परिवार से दूर जा पाना, देर शाम तक घर के अपने घर के कार्यों के लिये रुक पाना और अनजान परिस्थितियो में अकेले रहकर कार्य कर पाना जैसे कुछेक व्यावहारिक दिक्क़तों से आज भी सम्भव नहीं है जिसका पूरा फायदा उनके बैठ कर किये जाने वाले जैसे कार्यों को कम दाम देते हुए हमेशा की तरह आज भी फायदा चहूँओर उठाया जा रहा है। जबकि इसी कार्य को अगर पुरुष श्रमिक से महिला श्रमिक न मिल पाने की दशा मे कराना हो तो भी उन्हें महिला श्रमिक जितना कम परिश्रमिक नहीं स्वीकार रहेगा, न दिया जायेगा।
 
महिला सशक्तिकरण और खेती के विकास दोनों ही भूमिका के लिये महिला श्रमिकों का उत्थान एक बेहद ही जरूरी कदम है, जिसके बिना ये विकास दर पाना सम्भव नहीं।
 
भारत में महिला किसानों, श्रमिकों और खेती में उनके योगदान के ऊपर  शोध और प्रसार कार्यों के लिये भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अन्तर्गत – कृषि में महिलाओं के लिए केंद्रीय संस्थान, भुवनेश्वर, ओड़िशा में 8वें पंचवर्षीय योजना (1992-97) के अन्तर्गत सन 1996 में स्थापित किया गया था। जब भी समय मिले इस जाने अनजाने वंचित कर दिये गये विषय पर और विस्तृत जानकारी, खेती में महिलाओं की और भी विस्तृत भूमिका और उनकी अनेकोनेक सफल कहानियों के लिये इनके वेबपेज़ पर जरूर ही जाइये।
 
निष्कर्ष्यात्मक तथ्य- आवश्यकता है आज भी नई उठ ख़डी हुई शक्तियों को और समर्थवान व्यक्तित्व बनाने और उनकी वजह से उनसे जुडी अन्य महिला कृषकों को उनके परिवार में कम से कम एक निर्णय लेने देने की शुरुआत करवाने की जिसे किसी छोटी छोटी पहल जैसे कि स्वयं सहायता समूह आधारित झिझक मिटाते प्रोसेसिंग, वर्मी कम्पोस्ट, मशरूम, शहद, फूल उत्पादन, गृहवाटिका जैसे कुछ बारीक़ और छोटे स्तर के बढ़िया तकनीकी ज्ञान बढ़ाते प्रायोगिक खेती में बढ़ने और उसमे उनकी दक्षता सँग खुद के आत्मविश्वास बाद बड़े क्षेत्र में सफल किसान बन जाने की छोटी छोटी सफल कहानियों को गाँव परिवार में उठा लाने की और इन्हे आगे बढ़ाने में आज आई अगली पीढ़ी की खेती पढ़ती/निभाती महिलायें एक दिन ये कार्य जरूर कर दिखायेंगी।
 
-डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ,विभागाध्यक्ष-उद्यान विज्ञान
केन्द्र समन्वयक-कृषि शोध केन्द्र
कृषि संकाय,रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय
रायसेन, मध्य प्रदेश
Facebook Comments