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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 29 Mar 2023 5:44 PM |   636 views

हल्दी खेती से फायदे अनेक

हल्दी का उपयोग प्राचीनकाल से विभिन्न रूपों में किया जाता रहा हैं, क्योंकि इसमें रंग महक एवं औषधीय गुण पाये जाते हैं। हल्दी में जैव संरक्षण एवं जैव विनाश दोनों ही गुण विद्यमान है।
 
प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त बरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक )ने बताया कि भोजन में सुगन्ध एवं रंग लाने में, बटर, चीज, अचार आदि भोज्य पदार्थों में इसका उपयोग करते हैं। यह भूख बढ़ाने तथा उत्तम पाचक में सहायक होता हैं।यह रंगाई के काम में भी उपयोग होता हैं।दवाओं में भी उपयोग किया जाता हैं। कास्मेटिक सामग्री बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता हैं। 
 
एक परिवार के लिए आवश्यकता-  एक सामान्य परिवार  को प्रति दिन 15-20 ग्राम हल्दी की आवश्यकता रहती है ।इस तरह से माह मे 600 ग्राम ,बर्ष मे 7 किग्रा सूखी हल्दी की आवश्यकता होती है।
 
मिलावटी हल्दी की पहचान -बाजार में ज्यादातर मिलावटी हल्दी आ रही है जिसमें  पीला रंग मिला रहता हैेै। यदि हल्दी की दाग कपडे़ पर लगता है तो साबुन से धोने से उसका रंग लाल हो जाता है तथा धूप मे डालने पर दाग हट जाता है ।यदि मिलावट है तो दाग बना रहता है। मिलावट से बचने के लिये कम क्षेत्रफल एक विश्वा /कट्ठा ( 125वर्ग मीटर ) मे हल्दी की खेती की तकनीकी जानकारी दी जा रही है।
 
मिट्टी- हल्दी की खेती करने के लिए दोमट,  मिट्टी, जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो, वह इसके लिए अति उत्तम है।
 
मुख्य प्रजातियाँ ,अवधि एवं उत्पादकता –राजेन्द्र सोनिया, सुवर्णा, सुगंधा, नरेन्द्र हल्दी -1 ,2,3,98 एवं नरेन्द्र सरयू मुख्य किस्में है। जो 200 से 270 दिन में पक कर तैयार होती है। जिनकी उत्पादन क्षमता 250 से 300 किग्रा./ विश्वा तथा सूखने पर 25प्रतिशत हल्दी मिलती हैं।
 
बुआई का समय एवं खेत की तैयारी- हल्दी के रोपाई का उचित समय  मध्य  मई से जून का  महीना होता है बुआई करने से पहले खेत की 4-5 जुताई कर, उसे पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लिया जाना चाहिए।
 
बीज की मात्रा एवं बुआई की विधि – 25 से 30 किग्रा प्रकन्द प्रति विश्वा लगता है। प्रत्येक प्रकन्द में कम से कम 2-3 आँखे होनी चाहिए। 5 से.मी. गहरी नाली में 30 से.मी. कतार से कतार तथा 20 से.मी. प्रकंद की दूरी रखकर रोपाई करें। 
 
सिचाई- हल्दी की फसल  मे रोपाई के 20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती हैं। गर्मी में 7 दिन के अन्तर पर तथा शीतकाल में 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
 
खाद एवं उर्वरक -मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करे। 250 किग्रा कम्पोस्ट या गोबर की खूब सड़ी हुई खाद प्रति विश्वा की दर से जमीन में मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किग्रा. एवं म्यूरेट आफ पोटाश  1.06किग्रा. रोपाई के समय जमीन मे मिला दे।  यूरिया की 1.37किग्रा  मात्रा दो बार रोपाई  के 45 व  90 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते  समय  डालें।
 
मल्चिग-हल्दी की  रोपाई के बाद हरी पत्ती, सूखी घास क्यारियों के ऊपर फैला देना चाहिए।
 
अंतःफसल- अंतः फसल के रूप में बगीचों में जैसे आम, कटहल, अमरूद,  मे लगाकर फसल के लाभ का अतिरिक्त आय प्राप्त की जाती है।
 
खुदाई- हल्दी फसल की खुदाई 7 से 10 माह में की जाती है। यह बोई गयी प्रजाति पर निर्भर करता है।
 
प्रायः जनवरी से मार्च के मध्य खुदाई की जाती है। जब पत्तियां पीली पड़ जाये तथा ऊपर से सूखना प्रारंभ कर दे। खुदाई के पूर्व खेत में घूमकर निरीक्षण कर ले कि कौन-कौन से पौधे बीमारी युक्त है? उन्हें चिंहित कर अलग से खुदाई कर अलग कर दें तथा शेष को अलग अगले वर्ष के बीज हेतु रखें। खुदाई कर उसे छाया में सुखा कर मिट्टी आदि साफ करे।
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