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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 31 Jan 2023 6:54 PM |   204 views

बसंतकालीन अरवी की खेती ज्यादा लाभकारी- प्रो. रवि प्रकाश

अरवी को घुईया के नाम  से भी जाना जाता है। इसकी खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है , लेकिन सिंचाई की सुविधा होने पर बसंतकालीन  में भी की जाती है। इसकी सब्जी आलू की तरह बनाई जाती है तथा पत्तियों की भाजी और पकौड़े बनाए जाते है।कंद में प्रमुख रूप से स्टार्च होता है। अरवी की पत्तियों में विटामिन ‘ए‘ तथा कैल्शियम, फॉस्फोरस और आयरन भी पाया जाता है।
 
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या के सेवानिवृत्त   प्रो.रवि प्रकाश मौर्य  निदेशक  प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया  ने बताया कि अरवी  बसंतकालीन और खरीफ  दोनों मौसम में उगाई जाती है। इसकी खेती वैज्ञानिक तरीक़े से की जाय तो काफी लाभकारी होगी। 
 
भूमि-अरवी के लिए पर्याप्त जीवांश एवं उचित जल निकास युक्त रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है।
 
उर्वरक का प्रयोग-  खेत की तैयारी के समय 3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा अर्थात 125 वर्ग मीटर के हिसाब से अरवी बुआई  के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देनी चाहिए। मृदा जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए यूरिया 1.00 कि.ग्रा., सिगल सुपर फॉस्फेट 4.70 कि.ग्रा. तथा म्यूरेट आफ पोटाश 2.00 कि.ग्रा.  मात्रा बुवाई के पूर्व खेत में मिला देना चाहिए। आधा-आधा  किग्रा. यूरिया बुवाई के 35-40 दिन और 70 दिनों बाद खड़ी फसल में टॉप-ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। 
 
बोआई का उपयुक्त समय-बसंतकालीन  हेतु फरवरी   में  तथा खरीफ के लिये जून से 15 जुलाई तक बुवाई की जाती है।
 
बीज /कंन्द की मात्रा- बुवाई के लिए अंकुरित कंद 10-15 किग्रा. प्रति विश्वा/ कट्ठा  मे जरूरत पड़ती है।
 
बीजोपचार  कैसे- बोने से पहले कंदों को  मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 1 ग्राम/लीटर पानी के घोल में 10 मिनट तक डुबोकर उपचारित कर बुवाई करना चाहिए।
 
ऐसे करें बुआई- समतल क्यारियों में कतारों की आपसी दूरी 45 सें.मी. तथा पौधें की दूरी 30 सें.मी. और कंदों की 5 सें.मी. की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।  या  45 सें.मी. की दूरी पर मेड़ बनाकर दोनों किनारों पर 30 सें.मी. की दूरी पर कंदों की बुवाई करें। बुवाई के बाद कंद को मिट्टी से अच्छी तरह ढक देना चाहिए।
 
उन्नत किस्में- अरवी की किस्मों में नरेन्द्र अरवी-1, 2,  राजेन्द्र अरवी -1 प्रमुख हैं।  
 
सिंचाई– बसंतकालीन फसलों के लिये  आवश्यकतानुसार  15 दिनों के अन्तराल पर 5-6 सिंचाई करें ।  खरीफ में अरवी की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। अच्छे उत्पादन हेतु बरसात न होने पर 15 दिन के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। 
 
निकाई-गुड़ाई-  खरपतवारों को नष्ट करने के लिए कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई करें तथा अच्छी पैदावार के लिए दो बार हल्की गुड़ाई जरूर करें। पहली गुड़ाई बुवाई के 40 दिन बाद व दूसरी 60 दिन के बाद करें। फसल में एक बार मिट्टी चढ़ा दें। यदि तने अधिक मात्रा में निकल रहे हो, तो एक या दो मुख्य तनों को छोड़कर शेष सब की छंटाई कर देनी चाहिए।
 
पौध स्वास्थ्य प्रबंधन- अरवी में  झुलसा रोग से पत्तियों में काले-काले धब्बे हो जाते हैं। बाद में पत्तियां गलकर गिरने लगती हैं। इसका उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसकी रोकथाम के लिए 15-20 दिन के अंतर से कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत या मेन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम/लीटर पानी के घोल का छिड़काव करते रहें। साथ ही फसल चक्र अपनाए।
 
सूंडी  कीट का प्रबंधन-
अरवी  की पत्तियों को खाने वाली सूंडी  द्वारा हानि होती है क्योंकि यह कीडे़ नई पत्तियों को खा जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए  इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत  1 मिली को 3 लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें।
 
स्टीकर पदार्थ मिलाये-अरवी की पत्तियां चिकनी होती है इस लिये दवाओं के छिड़काव  हेतु घोल में चिपकने वाले पदार्थ जैसे गोद मिला कर छिडकाव करे।
 
खुदाई एवं उपज:- अरवी  की खुदाई कंदों के आकार, प्रजाति, जलवायु और भूमि की उर्वराशक्ति पर निर्भर करती है। साधारणतः बुवाई के 130-140 दिन बाद जब पत्तियां सूख जाती हैं तब खुदाई करनी चाहिए। उपज उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा  तीन क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं।
 
भण्डारण-अरबी के कंदों को हवादार कमरे में फैलाकर रखें। जहां गर्मी न हो। इसे कुछ दिनों के अंतराल में पलटते रहना चाहिए। सड़े हुए कंदों को निकालते रहें और बाजार मूल्य अच्छा मिलने पर शीघ्र बिक्री कर दें।
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