‘ औद्योगिक प्रबंध तंत्र के बुद्ध- पथ : मेरी क़लम से एक संवाद’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया

अपने व्याख्यान में हरिहर प्रसाद चतुर्वेदी ने कहा कि आत्म को प्रौद्योगिकी से जोड़ना आवश्यक है। विश्वध्वंस में जो विज्ञान के अंश सम्मिलित हैं, हमें चाहिए कि उनको आकलित करें। उसको बदलें। आज मस्तिष्क की प्रबलता बढ़ गयी है, जब कि उदर, हृदय और मस्तिष्क का समबाहु त्रिभुज चाहिए। हम समय के दिव्यावदान हैं |
आज ज़्यादातर सिद्धांत चल रहा है, प्रयोग नहीं । सकारात्मक ऊर्जा से नकारात्मकता को नकारने की आवश्यकता है। आज विज्ञान का विज्ञान व अध्यात्म से शीतयुद्ध है। क्या केवल पूर्व व पश्चिम ही हैं पारिभाषिक शब्दावली में ? तो फिर उत्तर-दक्षिण कहाँ गए ? आत्म- मंथन स्वयं द्वारा स्वयं से संवाद है। धरती सबकी कार्यशाला है। आज के समय में यह कहना उचित होगा- ‘मैं ही नहीं , मैं भी’।
अध्यक्षीय सम्बोधन में कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि मन का प्रबंधन आवश्यक है। वहीं से समाज- प्रबंधन व उद्योग- प्रबंधन की दृष्टि आएगी । बीमार मन से काम करने पर दु:ख पीछा करेगा। आप अपने जीवन का प्रबंधन कैसे करेंगे, यह महत्त्वपूर्ण है। पर- कल्याण की भावना लाएँ तथा चेतना का विस्तार करें। संतोष भी एक कारक है। यह अकर्मण्यता नहीं है।
अपने संयोजन व संचालन के प्रास्ताविक क्रम में प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने कहा कि प्रबंधन व्यष्टि से समष्टि की ओर जाता है। उद्योग में ‘शुभ लाभ’ आवश्यक है। ‘समानुभूति’ व ‘करुणा’ के बगैर कोई औद्योगिकता नहीं चल सकती जो बुद्ध-दृष्टि का ही संघनन है। मध्यमार्ग , संतुलन व मैत्री से उद्योग का आधार बनता है। वे सभी साथी हैं , जो किसी औद्योगिक इकाई में कर्मशील हैं।
व्याख्यान- उपरांत विमर्श में प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार, प्रो. राम नक्षत्र प्रसाद , डॉ. मुकेश वर्मा, भंते डॉ. धम्म ज्योति आदि ने भाग लिया तथा अपने विचार रखे।
धन्यवाद-ज्ञापन करते हुए प्रो. हरे कृष्ण तिवारी ने आज के व्याख्यान को महत्त्वपूर्ण बताया क्योंकि इससे बुद्ध-दृष्टि की नई समझ विकसित होती है।
कार्यक्रम में हरिहर प्रसाद चतुर्वेदी के अलावा नव नालंदा महाविहार के आचार्य, गैर शैक्षणिक जन , शोध छात्र तथा अन्य छात्र उपस्थित थे।
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