‘बुद्ध के महापरिनिर्वाण के काल निर्धारण का आलोचनात्मक परीक्षण ‘ विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया
नालंदा – लेखक , इतिहासविद एव प्रशासक वेदवीर आर्य का ‘बुद्ध के महापरिनिर्वाण के काल निर्धारण का आलोचनात्मक परीक्षण ‘ विषय पर विशेष व्याख्यान नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय में आयोजित हुआ।
इस व्याख्यान में उन्होंने इतिहास के कालक्रम पर नयी दृष्टि देने की बात कही । उन्होंने कहा कि भारत निरंतर विकसनशील सभ्यता है। गिलगित में बहुत सारे भोजपत्र मिले। नालद व माठर ग्राम का उल्लेख मिलता है। बुद्ध निर्वाण से लेकर आज तक का इतिहास मिलता है। महाभारत युद्ध से बुद्ध परिनिर्वाण तक का अन्तराल देखा जाना चाहिए। कई इतिहासकार को महाभारत को एपिक मानते हैं।200 वर्षों का सही ऐतिहासिक कालक्रम निर्धारित नहीं हो पाया।
320 बीसीई में चंद्रगुप्त मौर्य का राज्याभिषेक हुआ, इसका कोई साक्ष्य नहीं है। सिकंदर की मृत्यु को ही ऐतिहासिक तिथि तय करना बेहद अनुचित है। जितने भी इंडो ग्रीक प्रमाण सिकन्दर के बाद आये। क्रोनोलोजी में समस्या है। भारतीय मानक माना नहीं जाता। इक्ष्वाकु ऐतिहासिक नहीं किन्तु उनके वंशज ऐतिहासिक हैं, यह तर्क से परे बात है।
कई अशोक थे। इतिहासकारों ने सबको मिला दिया है। सीरिया तक बुद्ध प्रभाव था। इतिहास के तारतम्य को गलत ढंग से देने से ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य बदल जाता है। प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिये संस्कृत, पालि, प्राकृत आना चाहिए। इतिहास के अध्येता अंग्रेज़ी प्रणाली से समस्त निर्धारण करते हैं। सिर्फ यह लांछन कि भारतीयों को क्रोनोलोजी नहीं आती, इतिहास लिखना नहीं आता, यह गलत है। साहित्य के आधार पर क्रोनोलोजी तय कर सकते हैं। शक व शकांत को एक मानने से अनेक गलतियाँ हुईं हैं। भारतीय डेटिंग को देखकर वैश्विक डेटिंग बदलनी होगी। भारतीय ढंग से समझ कर इतिहास का कालक्रम निर्धारित किया जा सकता है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में कुलपति प्रो वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि विदेशी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को सही कालक्रम नहीं दिया। सही इतिहास की उपेक्षा की। उन्होंने भारतीयों को गरीब, बेढंगा बताने का दुष्प्रयास किया। साक्ष्यों को नये तरीके से देखें। हर धर्म का मनोविज्ञान है। साहित्यिक साक्ष्य को सिर्फ कपोल कल्पित नहीं बताया जा सकता।केशरिया का स्तूप विश्व का सबसे ऊँचा स्तूप सिद्ध हो सकता है, यदि उसकी ठीक से खुदाई हो। यदि मार्क्सवादियों को सारे महाभारत व रामायण के प्रसंग वास्तविक नहीं हैं तो उनका उदाहरण क्यों देते हैं ? अपनी आँख खोलें , इतिहास को नये ढंग से देखें। तब भारतीय इतिहास एक नये ढंग का इतिहास होगा।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रो राणा पुरुषोत्तम ने कहा कि इतिहास को नए तरीके से देखने की ज़रूरत है। तभी उसका कालक्रम नए ढंग से बन सकता है।
धन्यवाद-ज्ञापन करते हुए प्रो. विश्वजीत कुमार ने कहा कि तिब्बत व बर्मा भारत के क्षेत्र में थे, कालक्रम निर्धारित करते हुए इस बात का ध्यान रखें।
कार्यक्रम में विशिष्ट अभ्यागत संजय जी के अलावा नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय के आचार्य, शोधछात्र एवं इतिहास-प्रेमी उपस्थित थे।
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