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By : shweta mehrotra | Published Date : 17 Dec 2022 7:11 PM |   586 views

शोर ( ध्वनि प्रदूषण )

ऐसा कहते है जिस आंगन में शोर शराबा रहता है वो घर बसा हुआ सा लगता है। यहां शोर-शराबा से आशय है घर मे हसीं की फुवारे, नोक–झोंक की आवाज़े, सुबह– सवेरे रेडियो पर भजन, बडो का हुकुम तो बच्चो की फरमाइशें, इस तरह के शोर शराबे से कोई घर नही बचा है ?
परन्तु जब “शोर” कान से हमारे दिमाग को परेशान और हममें बैचेनी पैदा करे तब वो ‘प्रदूषण’ बन जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1972 में असहनीय ध्वनि (noice) को प्रदूषण का एक अंग माना है। ये एक गम्भीर समस्या के रूप में उभर रहा है और इसका कुप्रभाव हम मनुष्यो में ही नहीं बल्कि इस कायनात में रहने वाले सभी जीव, वनस्पतियों पर भी पड़ रहा है।
एनवायरनमेंटल हेल्थ क्राइटेरिया’ के अनुसार ‘शोर’एक ऐसी अवांछनीय ध्वनि जो, समाज के लोगो के स्वास्थ और रहन–सहन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बहराल हमे देखना ये है की इस प्रदूषण का हम पर कैसे, कम असर हो ? क्योंकि इस प्रदूषण को हम धीमी गति वाला मृत्यु दूत भी कह सकते है|
स्वास्थ की अगर हम बात करते है तब हमें मैंटल हेल्थ पर भी जागरूकता उतनी ही दिखानी चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण से अगर हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है तो उससे ज्यादा हम पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। हममें कई प्रकार के आचार– व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तन हो जाते है जिसे हम न्यूरोटिक मैंटल डिसऑर्डर कहते है। हानिकारक ध्वनि सीधे हमारे स्नायुतंत्र पर असर करती है। इस प्रदूषण का दुष्प्रभाव इतना बुरा होता है कि व्यक्ति को बोलने में व्यवधान आता है| चिड़चिड़ापन उसके स्वभाव में जाता है, नींद ठीक से नहीं आती दिमाग स्थिर नहीं रहता। मजे की बात ये है की हम जान ही नहीं पाते की ये बदलाव हममें शोर की वजह से भी हो सकता है।
ध्वनि प्रदूषण के बहुत से कारण है यहां मैं आपका ध्यान उस ओर ले जाना चाहती हुं कि यदि आप थोड़े भी सजग है तो आप ज़रूर ये महसूस करेंगे की हल्की ही सही कही से आपके इर्द–गिर्द आवाजे बनी ही रहती है।
जैसे,, पड़ोस के घर से सुबह सुबह कूकर में सीटी लगना, आपके घर की वॉशिंग मशीन के चलने की आवाज़, ऑफिस में कंप्यूटर स्टार्ट होने की आवाज़, घर या ऑफिस में सड़क पर वाहन चलने की आवाज़, और ऐसी कई सारी आवाज़ें जिन पर हमारा ध्यान नहीं जाता पर वो बनी हुई है और हमारे कान के रास्ते लगातार हमे सुनाई भी दे रही है|
आपको मैं बता दूं ये सब हमे फिजिकली और मेंटली हानि पहुंचा रही है और ये भी सच है कि हम इनसे बच भी नही सकते| हमारे कान के लिए कितनी आवाज़ सही है? इसके मानकों पर न जाते हुए  उदाहरण से आपको समझती हूं कि एक छोटी चिड़िया कि आवाज़ जितनी ध्वनि हमारे लिए हेल्दी है और हमारे कान सुनते क्या है? डी जे!
अब ये प्रैक्टिकल नहीं कि हम इतनी कम आवाज़ के बीच मे रह सके, तो बस| बचाव ही एक मात्र उपाय हैं हमें क्या करना है? एकांत ढूंढिए, सुबह नदी किनारे या पार्क मे बैठिए |दिन में किसी भी समय, प्रकृति के करीब रहिए। कुछ समय के लिए मोबाइल को छोड़िए। प्रणायाम कीजिए।
मौन धारण कीजिए। इस भयानक प्रदूषण के, ये सब रक्षा कवच है। हम ना चाहते हुए भी इस प्रदूषण का हिस्सा तो हैं ही और इस प्रदूषण को लेने के लिए बाध्य भी, तो बस बचाव ही किया जा सकता हैं। कोशिश कर सकते है की अपने ओर से शोर कम से कम हो और इस वसुंधरा में प्रदूषण को कम कर के अपना भी योगदान दे पाए।
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