आयुर्वेद प्रकृति का वरदान
आज आयुर्वेद की लोकप्रियता भारत सहित दुनियाँ के सभी देशों में तेजी से बढ़ती जा रही है। आयुर्वेद न सिर्फ भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है अपितु पूरे विश्व के मानव समुदाय की जीवन पद्धति के रूप में विकसित हो गई है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के तीस से अधिक देशों ने इसकी मान्यता दी है।
विगत आठ वर्षों के दौरान आयुष औषधि का व्यापार बीस हजार करोड़ रूपये से बढकर डेंढ लाख करोड रूपये तक बढ चुका है। आयुर्वेद बिना किसी साइड इफेकट के बच्चों से लेकर बूढों तक सबके लिए समान रूप से उपयोगी व कारगर यह एक ऐसी चिकित्या पद्धति है। जो बीमारी से पहले ही स्वास्थ्य का ध्यान रखती है।
आयुर्वेद प्रकृति का वरदान है | आयुर्वेद से एक स्वस्थ शरीर में उन समस्त पोषक तत्वों की प्रतिपूर्ति हो जाती है जिनके अभाव में शरीर में तमाम तरह की व्याधियों के आने की सम्भावना बनी रहती है। आयुर्वेदिक औषधिया शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता की अभिवृद्धि करती है।
गोवा में दस दिसम्बर से आयोजित विश्व आयुर्वेद सम्मेलन में पचास देशों के पाँच हजार प्रतिनिधि को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आमजनों से आयुर्वेद को अपनाने पर जोर दिया।
उन्होने कहा है कि ज्ञान-विज्ञान से विश्व कल्याण का संकल्प अमृत काल का एक बड़ा लक्ष्य है। जिसे हम प्राणपन से पूरा करने हेतु दृढ संकल्पित है।
आयुर्वेद को बढावा देने हेतु अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान (AIIMS) की तर्ज पर देश में राजकीय आयुर्वेद संस्थान खोले जा रहे है। जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने की है।
आज समय की माँग है कि रियायती दर पर पूर्ण गुणवत्तायुक्त आयुर्वेद औषधि जन-जन तक पहुँचाने हेतु प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र की भाँति आयुर्वेद जन औषधि केन्द्रों की स्थापना की जाए। आयुर्वेद को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल कर, विचार गोष्ठियों के माध्यम से जन जागरूकता बढायी जाए।
- “मनोज मैथिल”