घबराना क्यूँ
मजबूत है इरादे
जब मेरे फिर
घर लौट जाना
क्यूँ निकल गए
जब घर से पग
मेरे कठिनाई से
फिर घबराना क्यूँ।
चाहत है जब
आसमा छूने का
रुक के सफर
में फिर क्यूँ
राह देखना
किसी ओर का
खुद पे है भरोसा।
मान लेने से
तो हार हो
जाती है यदि
जीतना है तो
ठान लेनी चाहिए
मंज़िल पाकर ही
दिखाना चाहिए।
ना रुकना ना
कभी झुकना
चल दे दिल
जहाँ है चलना
कठिनाई इतना
किया पार मुडके
पीछे मत देखना।
मन के हारे
हार होती है
मन के जीते
जीत मंजिल
मिलेगी ही
एक दिन यह
रख तू उम्मीद।
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