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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 18 Mar 2022 12:40 PM |   1389 views

फागुन मे बुढ़वो देवर लागे

 
मेरे गांव में एक लपेटन काका हैं जिनकी उम्र लगभग नब्बे साल है| एक दिन अपने दरवाजे पर मुंह लटकाए बैठे थे| मै उधर से गुजर रहा था| उनको मायूस देखकर बोल पड़ा– 
 
किस बात का है गम, क्यों आंखें हैं नम? कभी मैंने देखा था मुस्कुराते हुए हरदम, 
इतना सुनते ही लपेटन उठ खड़े हुए और बोले —
 अब हम क्या कभी मुस्कुराएं ? कहाँ हंसें और किसको हंसाएं ?
तब मैंने कहा—-आप ही न लपेटन काका ? बच्चे बूढ़े सभी के आका, तब लपेटन काका बोले—
 
“अब लोग मुझे बूढ़ा समझने लगे हैं
गाँव समाज का कूड़ा समझने लगे हैं|
 
इतने में फगुआ और जोगिड़ा गाते हुए एक मस्तों की एक टोली आ गई. मैंने कहा कि  कोई ऐसा ताल सुनाओ कि काका की जवानी लौट आए| और लपेटन काका ऊंची से ऊंची दीवार भी लांघ जाएं |
इतना सुन कर वो नाचते बजाते गाने लगे—– 
 
“बुढ़वो देवर लागे फागुन में
सबके किस्मत जागे फागुन में
आगे पीछे कुछ देखें ना काका
ले के गुड़िया को भागे फागुन में “
 
इतना सुनते ही लपेटन काका का मुंह जो सूखे हुए गेंदा के फूल की तरह लटका हुआ था वह खिलते हुए गुलाब की तरह खिल गया और मस्ती में नाचते हुए बोल पड़े—-
 
“कौन कहता है कि बूढ़ों का कभी गुडलक नहीं होता
ढलती  उम्र में किसी को इश्क़ करने का हक नहीं होता
बुजुर्ग तो सदा अपने अनुभव का लाभ देते लेते रहते हैं
यह बात और है कि इन पर किसी को शक नहीं होता “
 
इसके बाद लपेटन काका “बुढ़वो देवर लागे फागुन में ” गाते हुए हाथ में रंग और अबीर लेकर चल पड़े|  रास्ते में जो मिले नर चाहे नारी सबको रंग लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे | इनकी उम्र का लिहाज करते हुए कोई कुछ बोल नहीं रहा था |तब तक एक लड़की अपने स्कूल से छुट्टी के बाद बस्ता लिए अपने घर जा रही थी |
 
लपेटन काका ने “बुढ़वो देवर लागे फागुन में” कहते हुए उस लड़की को रंग लगा दिया  उस लड़की ने लपेटन काका के सिर पर चप्पल से मारती हुई बोली– चप्पल से बेटी काका को दागे फागुन में |
 
डॉ भोला प्रसाद ” आग्नेय 
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