शिवरात्रि
शिव पुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। ब्रह्मा, विष्णु तथा माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने बताया कि शिव रात्रि का व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है।
नगेंद्रहाराय त्रिलोचनाय
भष्मंगरागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय
जो शिव नागराज वासुकी की हार पहने हुए हैं,तीन नेत्रों वाले हैं तथा पूरे शरीर में भस्म लगाए हुए हैं,इस प्रकार महान ऐश्वर्य संपन्न जो शिव नित्य अविनाशी एवं शुभ हैं, हम नमन करते हैं।
शिव रात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव जिसमें अपना बोध होता है कि, हम भी शिव के अंश हैं और उनके ही संरक्षण में हैं।माना जाता है की श्रृष्टि के शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में अर्थात ब्रह्म से रुद्र रूप में अवतरण हुआ था।
ईसान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सती का पार्वती के रूप में पुनर्जन्म हुआ था। मां पार्वती ने आरंभ में अपने सौंदर्य से शिव को रिझाना चाहा लेकिन वे सफल नहीं हो सकीं। इसके बाद त्रियुगी नारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरी कुंड में कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिव जी का मन जीत लिया। इसी दिन भगवान शिव और आदि शक्ति का विवाह संपन्न हुआ। भगवान शिव का तांडव और माता भगवती का लास्यनृत्य के समन्वय से ही श्रृष्टि का संतुलन बना हुआ है।
शिव लिंग,सर्प और त्रिनेत्र क्या है ?
वातावरण सहित घूमती धरती या अनंत ब्रह्माण्ड का अक्स ही लिंग है।इसलिए इसके आदि और अंत भी देवताओं तक के लिए अज्ञात है। सौर मंडल के ग्रहों के घूमने की कक्षा ही शिव के तन पर लिपटे सर्प हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूर्य चंद्रमा और अग्नि ही उनके तीन नेत्र हैं। शिव पुराण में वर्णित है कि शिव जी के निराकार स्वरूप का प्रतीक “लिंग” शिवरात्रि की पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर-
लोग महाशिवरात्रि को ही शिवरात्रि भी बोलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। ये दोनों पर्व अलग – अलग महीने और दिन में पड़ते हैं। हर महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं।फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। शिव का निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाता है।
वैसे तो भगवान शिव और मां पार्वती की उपासना के लिए सभी दिन अच्छे होते हैं,फिर भी सोमवार को शिव का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है।इस दिन शिव का पूजा अर्चना करने का विधान है।सोमवार चंद्र से जुड़ा हुआ दिन है। शैव पंथ में चंद्र के आधार पर ही सभी व्रत और त्यौहार आते हैं।
शिवरात्रि क्यों मनाते हैं?
माना जाता है की महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। शिव का आनंद लेने और जगाने के लिए देवताओं ने अलग -अलग नृत्य और संगीत बनाए हैं।सुबह होते ही भगवान शिव ने सबको आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है जिसने संसार को बचाया। तब से इस दिन भक्त उपवास करते हैं।
महा शिवरात्रि साल में एक बार आती है।यह धार्मिक पर्व फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महा शिवरात्रि पड़ती है।भगवान भोले नाथ के भक्त इस दिन को श्रद्धा भाव और पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इस दिन भक्त अपने आराध्य देव भगवान शिव का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए मंदिर जरूर जाते हैं।
महा शिवरात्रि वह महारात्रि है जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ है।यह पर्व शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शिव दर्शन ,शिव पूजन से जीवन में कोई विघ्न बांधा नहीं आती है।शिव को भांग धतूरा और कुछ बेलपत्र से ही हम खुश कर लेते हैं। भगवान शिव की भक्ति और उपासना से हमें ऊर्जा मिलती है।
शिवरात्रि व्रत करने से भगवान शिव भोले हमें काम ,क्रोध,लोभ,मोह,मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शांति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं।
( राम नरेश )
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