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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 13 Jan 2022 4:18 PM |   685 views

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति का अर्थ है सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना| कुल बारह राशियाँ होती हैं और सूर्य क्रमशः प्रत्येक राशियों से होते हुए गुजरता है| लेकिन मकर राशि में प्रवेश करने का विशेष महत्व है क्योंकि उसी समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं| सूर्य के उत्तरायण होने का तात्पर्य है देवलोक का प्रकाशित होना| सूर्य के दक्षिणायन के समय देवलोक में रात्रि सम अंधकार रहता है,  सूर्य छः मास दक्षिणायन और छः मास उत्तरायण रहते हैं| दक्षिणायन के समय देवलोक चंद्रमा के प्रभाव से प्रभावित रहता है|
 
मकर संक्रांति का संबंध हमारे हिंदी कलेण्डर से न होकर इसका संबंध सूर्य की गति और पृथ्वी के भूगोल से रहता है जो सदा चौदह जनवरी को पड़ता है या एक दिन आगे या पीछे| आगे या पीछे विशेष परिस्थितियों में होता है|
 
भारत के अलग अलग क्षेत्रों में मकर संक्रांति का त्यौहार अलग अलग ढंग से मनाया जाता है और इसका नाम भी अलग अलग है| तमिलनाडु में पोंगल, केरल आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में संक्रांति, पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी, असम में बिहू तथा शेष भाग में खिचड़ी के नाम से यह त्यौहार मनाया जाता है| प्रत्येक प्रदेश में इसे मनाने का तरीका भी अलग अलग होता है वैसे इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य नई फसल का स्वागत और उत्तरायण होने पर सूर्य की उपासना है|
 
मान्यता है कि मकर संक्रांति से नई गति, नई ऊर्जा तथा नई स्फूर्ति के साथ साथ हाड़कपावन ठण्ड से मुक्ति मिल जाती है| कोई अनुष्ठान आदि के द्वारा इस दिन सिद्धि प्राप्त की जा सकती है|
 
 अलग अलग प्रान्तों की मान्यताओं के अनुसार इस दिन के पकवान भी अलग अलग होते हैं फिर भी दाल चावल की खिचड़ी का महत्व सर्व विदित है| इसके अतिरिक्त तिल और गुड़ के धान से बनाए गए चूड़ा का भी विशेष महत्व है| इनके सहयोग से तिलकुट और तिलवा जनवरी प्रारंभ होते ही बनने लगता है और पूरे महीने भर इसका प्रयोग घर घर में होता रहता है|
 
सूर्य के उत्तरायण होते ही देवताओं की ब्राह्म मुहूर्त उपासना का पुण्य काल प्रारंभ हो जाता है| यह समय साधना का सिद्धि काल भी कहा जाता है| परा अपरा विद्या भी प्राप्ति काल प्रारंभ हो जाता है| ऐसी मान्यता है कि इस दिन सुबह स्नान दान कर के सूर्य देव को प्रसन्न कर मन वांछित फल प्राप्त किया जा सकता है|
 
इस समय देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण एवं यज्ञ कर्म आदि पुनीत कार्य किए ज सकते हैं| आज के दिन पतंग उड़ाकर भी अपनी खुशी का इज़हार किया जाता है| कहीं कहीं पतंगबाजी के बड़े बड़े आयोजन भी किए जाते हैं लेकिन पतंग के धागे में लगे मंझे से पक्षियों के घायल हो जाने के कारण पतंगबाजी में कुछ कमी आई है| इस प्रकार मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे भारत में अपने अपने ढंग से मनाया जाता है|
 
( डॉ . भोला प्रसाद , आग्नेय )
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