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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 1 Oct 2021 9:13 PM |   280 views

इंडियन सोसायटी फ़ॉर बुद्धिस्ट स्टडीज़ का 21 वाँ सम्मेलन आरम्भ

नालंदा -इंडियन सोसायटी फ़ॉर बुद्धिस्ट स्टडीज़ का 21 वाँ सम्मेलन आरम्भ आज नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय परिसर में आरंभ हुआ हुआ।
 
इस अवसर पर प्रो. सुनयना सिंह, कुलपति, नालंदा विश्वविद्यालय ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि नालंदा जनपद स्थित नव नालंदा महाविहार व नालंदा विश्वविद्यालय के ऊपर गहरा उत्तर दायित्व है कि वे भारतीय विद्या का प्रसार कैसे करें, विशेष रूप से बौद्ध अध्ययन व संस्कृति का। बौद्ध धर्म इतने वर्षों से अपनी वैश्विक प्रासंगिकता बनाए हुए है, यह महत्त्वपूर्ण है। राजगीर व बोध गया पावन व ज्ञान की धरती है। “यह टूटा प्रासाद महिमा का खण्डहर है”, दिनकर ने कहा है। हम नालंदा अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय को प्राचीन गौरव पर आधारित निर्मित करने की कोशिश कर रहे हैं।
 
बुद्ध के पास जाएं तो जीवन के चार आर्य सत्य मिलेंगे जो आज भी प्रासंगिक हैंं। बुद्ध की शिक्षाएं आज भी उतनी ही मूल्यवान हैं। बुद्ध की हर मूर्ति से अहिंसा, शान्ति मिलती है। पूरे विश्व में बुद्ध की शिक्षाओं की प्रसिद्धि है। इसमें धर्मचक्र का भी पूर्ण  महत्त्व है।उनके यहाँ एशियाई विज़डम मिलता है। नये शिक्षक बुद्ध की शिक्षाओं को विद्यार्थियों तक पहुचाएं। उनका सद्भाव भी पहुंचाना भी हमारा धर्म है। 70 वर्ष पर नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय को मैं बधाई देती हूंं। इसको डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने स्थापित किया, यह ऐतिहासिक है।
 
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. वैद्यनाथ लाभ , कुलपति, नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय ने अपने अध्यक्षीय उद् बोधन में कहा – युवा अध्येताओं में नई सक्रियता आनी चाहिए ताकि वे ज्ञान के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकें। पालि, बौद्ध अध्ययन, संस्कृत, अपभ्रंश में उन्हें आगे आना चाहिए ।
 
बुद्ध को जानने के लिए बुद्धवादी होना आवश्यक नहीं है। इसके लिये आस्था, विश्वास व समझ महत्त्वपूर्ण है।
 
आजकल अध्ययन में कटपेस्ट बहुत हो रहा है। मौलिकता होनी चाहिए । ज्ञान से आलोक मिलता है। यह पहली बार हुआ है की आई एस बी एस के अधिवेशन को दुहराया गया है। भग्नावशेष बहुत कुछ कहते हैं। नालंदा महाविहार में हर विद्या थी। आज हम उस श्रेष्ठ विद्या को नये सिरे से लाएँगे। विद्वानों के सत्संग से विविध ज्ञान का नया क्षेत्र खुलता है।
 
विशिष्ट अतिथि व प्रख्यात पुरातत्व विद्वान  प्रो. अरविंद जामखेड़कर ने कहा-
जैन, बौद्ध या आजीवक का अध्ययन एक दूसरे का पूरक है, विरोधी नहीं। ब्राह्मण एवं श्रमण भी एक दूसरे को समन्वित करते हैं।  इस क्षेत्र में प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने विद्या  के क्षेत्र में गम्भीर कार्य किए ।
 
एएसआई के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक, पुरातत्व विशेषज्ञ के के मुहम्मद ने कहा-
पटना क्षेत्र में राजगीर स्तूप को लक्षित करते हुए  मैंने सुझाव दिया कि यहाँ पुरातत्व का कार्य होना चाहिए। केसरी स्तूप को लक्षित किया। विक्रमशिला की खुदाई से नई दृष्टि दी। 1100 के आसपास नालंदा विवि को नष्ट कर दिया गया।
 
बुद्ध के घुंघराले बालों को देख कर बुद्ध को अलग अलग देश का लोग बताते थे। देवानां प्रियं की अलग चर्चा हुई। शशि कोटे का भाव अर्थ निकाला गया। शशि का अर्थ चंद्रमा । स्तम्भ की कहानी को विश्लेषित किया गया। सांची स्तूप 1880 में खोजा गया।दीपवंश में उल्लेख है कि बुद्ध के महाप्रयाण के दो सौ साल के बाद अशोक राजगद्दी पर बैठे। कपटिया से नालंदा के बारे में उल्लेख मिला। यहाँ के यूरेका मोमेंसस के बारे में लोगों को पता नहीं। विवि में आना चाहिए ।
 
कुरुक्षेत्र विवि के पूर्व आचार्य  डॉ. डी.सी. जैन ने पारस मल जैन की उपब्धियों का बखान किया तथा जैन अनुसन्धान के क्षेत्र में और भी कार्य की आवश्यकता बताई।
 
आई एस बी एस के सचिव  डॉ ललित गुप्त ने आई एस बी एस की यात्रा व प्रो वैद्यनाथ लाभ के योगदान को बताया कि कैसे वे बड़े काम से लेकर चिट्ठियों को पोस्ट करने तक का कार्य करते थे। इस संस्था ने बहु आयामी विद्या को विकसित करने की दिशा में कार्य किया।
 
आई एस बी एस के अध्यक्ष डॉ एस पी शर्मा ने बुद्ध को आज भी प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि आई एस बी एस की यात्रा संघर्ष भरी रही है। 
 
 डॉ. तृप्ति जैन ने सागर मल जैन के विद्या अनुराग व कार्य के बारे में बताया।
 
जिन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ , वे इस प्रकार हैं-
 
२१वें वार्षिक सम्मेलन की स्मारिका, बौद्ध ज्ञान का महासागर :खंड १० और ११ : प्रधान संपादक: प्रो. एस पी शर्मा ,संपादक: प्रो बैद्यनाथ लाभ, पालि  सद्दबोध (प्रो बैद्यनाथ लाभ द्वारा लिखित),  जिन दीप वंश- प्रस्तुति एवं  भूमिका : प्रो राज नक्षत्र प्रसाद।
 
प्रो राम नक्षत्र प्रसाद ने ‘जिन वंश दीप’ ग्रंथ के बारे में बताया कि इसमें गौतम बुद्ध की विस्तृत चर्चा है। 1917 में सिंहली में इसका पहली बार प्रकाशन हुआ था। तीस सर्गों में इसका प्रबंधन है। धन्यवाद ज्ञापन क्रम में उन्होंने सभी आगत जनों का आभार जताया। प्रारंभ में मंगल पाठ किया गया जिसे डॉ धम्म ज्योति ने किया तथा संस्कृत में भी मंगलाचरण किया गया।
 
कार्यक्रम में डॉ नीहारिका लाभ, डॉ एस पी सिन्हा, रजिस्ट्रार  , नव नालन्दा महाविहार के आचार्य, छात्र, बुद्ध प्रेमी , बाहर से आए प्रतिनिधि सम्मिलित थे।
 
परिचय दास आज इसके बाद  डॉ अरविंद जाम खेड़कर का विशेष व्याख्यान हुआ।  अकादमिक सत्र में प्रो रवींद्र नाथ श्रीवास्तव “परिचय दास, अम्बालिका सूद,अरविंद सिंह, के के पांडेय, एलिर त्रिवेदी, डॉ विश्व जीत सिंह का व्याख्यान हुआ , जिसकी अध्यक्षता प्रो डीसी जैन ने की।
 
समान्तर सत्र में  सुस्मिता व्यास,अनिर्वाण सेन गुप्त, पल्लवी बागची, राजेन्द्र प्रसाद, जयंती कुमारी , शंकर शर्मा का व्याख्यान हुआ , जिसकी अध्यक्षता दो राजीव रंजन ने की।
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