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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 11 Jun 4:37 PM |   525 views

अरहर की मेड़ पर बुआई ज्यादा लाभकारी है-प्रो. रविप्रकाश

दलहनी फसलें  खाद्यान्‍न फसलों की अपेक्षा अधिक सूखारोधी होती है। इसलिये सूखा ग्रस्‍त क्षेत्रों में भी इससे अधिक उपज मिलती है।
 
आचार्य  नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय  कुमारगंज, अयोध्या  द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष  प्रोफेसर रवि प्रकाश मौर्य ने  बताया कि खरीफ की दलहनी फसलों में अरहर का स्थान प्रमुख है।  उन्‍नत तकनीक से अरहर का उत्‍पादन दो गुना किया जा सकता है।
 
भूमि– अरहर के लिये बलुई दोमट /दोमट भूमि  तथा पी.एच.मान 7-8 के बीच हो ।
 
बुआई का समय ए्वं बीज की मात्रा-  देर से पकने वाली प्रजातियाँ जो 270 दिन में तैयार होती है, की बुआई वर्षा प्रारंभ होने के साथ ही जुलाई माह तक कर देनी चाहिए।  देर से पकने वाली प्रजातियों का  बीज 15 किलो ग्राम प्रति हैेक्‍टर की दर से बोना चाहिए। 
 
बुआई की विधि-  मेड़ पर बुआई ज्यादा लाभदायक है। बर्षा से फसलें खराब नही होती है।  कतारों के बीच की दूरी  60  सें.मी. रखना चाहिए।  पौध अंतराल 20 – 30 से.मी. रखें। बोने के पूर्व  2 ग्राम थीरम + 1ग्राम कार्बेन्‍डाजिम फफूँदनाशक दवा प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। उपचारित बीज को राइजोबियम कल्‍चर 10 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। 
 
प्रमुख प्रजातियाँ- अरहर की मुख्य प्रजातियाँ  अमर ,आजाद, नरेन्द्र अरहर-1, नरेन्द्र अरहर-2, पी.डी.ए.-11, मालवीय विकास,मालवीय चमत्कार  एवं आई.पी.ए. 203  है। जिनकी पकने की अवधि 250-270दिन है। तथा उपज क्षमता 25 – 32कु. /हैक्टेयर है।
 
खाद एवं उर्वरक- बुवाई के समय 250 किग्रा. सिगल सुपर फास्फेट या  100 किग्रा डी.ए.पी.  व 20 किग्रा गंधक प्रति हेक्‍टर की दर से कतारों में बीज के नीचे दिया जाना चाहिए।  
 
सिंचाई-  जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्‍ध हो वहां  बौछारी एक सिंचाई फूल आने प्रारम्भ के समय  व दूसरी फलियॉ बनने की अवस्‍था पर करने से पैदावार अच्‍छी होती है।
 
खरपतवार प्रबंधन- खरपतवार नियंत्रण के लिए बुआई के  20-25 दिन में पहली निंराई तथा फूल आने से पूर्व दूसरी निंराई करें। या  पेन्‍डीमेथीलिन 2.50 – 3.00 लीटर को1000लीटर पानी में घोलकर बुआई  के तुरन्त बाद प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण होता है। 
 
सहफसलीखेती-  अरहर की फसल के साथ-साथ सहफसल के रुप मे तिल, बाजरा  ,ऊर्द ,एवं मूँग  की भी फसल ले सकते है।
 
अंतःफसल पद्धति से मुख्‍य फसल से  पूर्ण पैदावार एवं अंतरवर्तीय फसल से अतिरिक्‍त पैदावार प्राप्‍त होगी। मुख्‍य फसल में कीटों का प्रकोप होने पर या किसी समय में मौसम की प्रतिकूलता होने पर किसी न किसी फसल से सुनिश्चित लाभ होगा।
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