तौबा, ऐसी मुहब्बत
प्यार होने लगा, जब पसंद वो आये
ख़फ़ा हो गए अपने, खबर ज्यूं ही मिले
बन गए सब विरोधी, बागी मैं क्यूं बनूं
तोबा, ऐसी मुहब्बत मैं क्यूं करूं ?
पिता दुःखी हैं जिससे, मां नफरत करें
सगे नाखुश हैं, सब अनुचित कहें
फिर ऐसे मीत से, प्रीत मैं क्यूं रखूं
तौबा ऐसी मुहब्बत मैं क्यूं करूं ?
उन्हें अपना बना लूं, माना हसरत है मेरी
हक भी है मेरा, चुन लूं जीवन साथी
पर मीत अपना, अकेले मैं क्यूं चुनूं
तौबा, ऐसी मुहब्बत मैं क्यूं करूं ?
असह्य दर्द झेल जिसने जन्म दिया
मेरे हर घाव पर जिसने मरहम लीपा
उनका दिल तोड़ जख्मी, मैं क्यूं करूं
तौबा, ऐसी मुहब्बत मैं क्यूं करूं ?
( कवि पुष्प रंजन कुमार )
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