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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 25 Mar 5:45 PM |   463 views

अदरक की खेती कैसे करें किसान ?

प्राचीन काल से अदरक का उपयोग मसाले के रूप में साग-भाजी, सलाद, चटनी तथा अचार और विभिन्न प्रकार की भोजन सामग्रियों के निर्माण एवं नाना प्रकार की औषधियों के निर्माण में होता है। इसे सुखाकर सौंठ बनाई जाती है।
 
आचार्य  नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविधालय कुमारगंज अयोध्या  द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया  के अध्यक्ष प्रो.रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि बागों की भूमि का उपयोग अदरक की खेती के लिए कर सकते हैं।
 
मृदा एवं खेत की तैयारी- उचित जल निकास वाली  दोमट या रेतीली दोमट भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी होती है। जुताई  करके  मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लेना चाहिए।
 
बुआई का समय-  जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां पर इसकी बुवाई अप्रैल के द्वितीय पखवाडे़ से मई  तक करनी चाहिए। 
 
किस्में एवं अवधि- -अदरक की उन्नत किस्में  सुप्रभा , सुरुचि, सुरभि है। जो 200  से 225 दिनो मे तैयार  हो जाती है|
 
बीज की मात्रा ,बोने कि बिधि-  एक कट्ठा क्षेत्रफल  (125 वर्ग मीटर) के लिए लगभग 24 से 30 किग्रा. बीज प्रकन्दों की आवश्यकता होती है।जिन्हें 4 से 5 से.मी. के टुकड़ों में विभाजित कर लेते हैं। प्रत्येक टुकड़े का भार 25 से 30 ग्राम होना चाहिए और उसमें दो आंखें अवश्य हो। बीज प्रकन्दों को बोने से पूर्व 2.5 ग्राम  मैक़ोजेब  और  1 ग्राम वाविस्टीन मिश्रित प्रति लीटर पानी के  घोल में आधे घण्टे तक डुबोना चाहिए। फिर  छाया मे सुखाने के बाद में इन्हें 4 सेमी. की गहराई मे  पंक्तियों की आपसी दूरी 25 से 30 सेमी और पौधों की आपसी दूरी 15 से 20 सेमी रखते हैं। बीज प्रकन्दों को मिट्टी से भलीभांति ढक देना चाहिए। बुवाई के तुरंत बाद ऊपर से घास-फूस, पत्तियों व गोबर की सडी़ खाद से भलीभांति ढक देना चाहिए। ऐसा करने से मिट्टी के अंदर नमी बनी रहती है और तेज धूप के कारण अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है ।
 
खाद एवं उर्वरक–  खाद  एवं ऊर्बरकों के प्रयोग हेतु मृदा जांच अनिवार्य है।   किसी कारणवश मृदा जांच ना हो सके तो उस स्थिति में गोबर की खाद या कम्पोस्ट 200-250  किग्रा. प्रति कट्ठा की दर से जमीन में मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक युरिया 1.37 किग्रा, सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किग्रा.एवं म्यूरेट आफ पोटाश  1.06किग्रा. ,250 ग्राम जिंक सल्फेट, एवं 125 ग्राम बोरेक्स  रोपाई के समय जमीन मे मिला दे।  रोपाई  के 75 दिनोंं बाद मिट्टी चढ़ाते  समय यूरिया 1.37 किग्रा  देना चाहिये।
 
सिचाई-  अदरक की फसल में भूमि में बराबर नमी बनी रहनी चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के कुछ दिन बाद ही करते हैं और जब तक वर्षा प्रारंभ ना हो जाए, 15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करते रहते हैं। गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए।
 
खरपतवार प्रवंधन–  अदरक के खेत को खरपतवार रहित रखने और मिट्टी को भुरभुरी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। अदरक की फसल अवधि में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रत्येक गुड़ाई के उपरांत मिट्टी अवश्य चढ़ायें। पत्तियों का पलवार ( ऊपर से ढक ) देने से अंकुरण अच्छा होता है और खरपतवार भी कम उगते हैं। तीन बार पलवार देने से अधिकतम उपज मिलती है। 50-60 किलोग्राम हरी पत्तियों का पलवार बुवाई के तुरंत बाद, इतनी ही पत्तियों का पलवार 30 दिन व 60 दिन बाद देते हैं। जब पौधे 20-25 सेमी ऊंचे हो जायेें तो उन पर मिट्टी चढ़ा देते हैं।
 
खुदाई एवं उपज– बुवाई के लगभग 7-8 महीनों बाद फसल को खोदा जा सकता है। परंतु सौंठ के लिए फसल को पूर्ण रूप से पक जाने पर ही खोदते हैं। फसल के पकने में मौसम और किस्म के अनुसार 7-8 माह लगते हैं। जब पौधों की पत्तियां सूखने लगे, तब प्रकंदों को फावड़े अथवा खुरपी से खोदकर निकाल लेते हैं।प्रति विश्वा 200-250 किग्रा  प्रकंद मिल जाते हैं। सूखने पर इससे 20 से 30 किग्रा .तक सौंठ प्राप्त होती है। 
 
अंन्तः फसल- अदरक की अंतः खेती  मिर्च एवं अन्य फसलों के साथ मुख्यतया सब्जी वाली फसलों में कर सकते  हैं। अन्तरवर्ती फसल के रूप में बगीचों में जैसे आम, कटहल, अमरूद,  मे लगाकर फसल के लाभ का अतिरिक्त आय प्राप्त की जाती है।
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