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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 8 Mar 1:33 PM |   319 views

बेहतर आय के लिए गर्मी के मौसम में दूधिया मशरूम उगाए

गर्मियों में मशरूम लगाने के इच्छुक किसान तैयार हो जाए मिल्की मशरूम लगाने का मौसम आ गया है। आमतौर पर लोग समझते हैं कि मशरूम सर्दियों में उगती है मगर मिल्की मशरूम का उत्पादन गर्मी में भी की जा सकती है।

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी एवं उद्यान वैज्ञानिक रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि मैदानी क्षेत्रों में तीन तरह के मशरूम का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है, जिसमें सितंबर से मार्च माह तक ढींगरी मशरूम, अक्टूबर से मार्च तक बटन मशरूम अक्टूबर से  तक तथा इसके बाद मिल्की मशरूम का उत्पादन अप्रैल से सितंबर तक कर सकते हैं इस तरह मशरूम की फसल वर्ष भर ली जा सकती है।

मिल्की मशरूम का वैज्ञानिक नाम केलोसाईबी इंडिका है जिसे दूध  छत्ता, दुधारी या गर्मी के मशरूम के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह दूध के समान सफेद रहती है और सुखाने के बाद भी इसके रंग में ज्यादा परिवर्तन नहीं होता है।

इसके माइसीलियम के फैलाव के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तथा 80 से 90% कमी की आवश्यकता होती है अधिक तापमान 30 से 40 डिग्री सेल्सियस होने पर भी है मशरूम पैदावार देती रहती है, अतः इस मशरूम को अप्रैल से सितंबर माह तक आसानी से उगाया जा सकता है। अन्य मशरूम की तरह इसमें भी 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन, 4% बसा, 3:5 प्रतिशत रेशा एवं 4 प्रतिशत  कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। यह प्रोटीन, विटामिन बी 2, विटामिन ई और विटामिन ए के साथ-साथ फास्फोरस, पोटेशियम और सेलेनियम का एक समृद्ध स्रोत है। इसमें कैल्शियम, आयरन और जिंक भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह मशरूम एर्गोथियनिन एवम विटामिन सी जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। दूधिया मशरुम में बसा कम व प्रोटीन ज्यादा होता है तथा यह कम कैलोरी प्रदान करने वाला खाद्य पदार्थ है जिससे हृदय रोगियों के लिए उपयोगी है। इसमें बैक्टीरिया से लड़ने की क्षमता होती है । चावल और गेहूं की अपेक्षा मशरूम से शरीर को कम कैलोरी प्राप्त होती इसलिए मोटापा नहीं बढ़ता है। इसमें  शर्करा और स्टार्च नहीं होता अतः मधुमेह के मरीज भी इसका उपयोग कर सकते हैं।

दूधिया मशरूम धान/गेहूं के भूसे पर उगाए जाते हैं। भूसे का उपचार 60 डिग्री सेल्सियस के गर्म पानी या  कार्बेंडाजिम तथा फॉर्मलीन रसायन द्वारा करके 60 से 65% नमी पर बिजाई करते हैं। बिजाई के लिए 15 * 20 इंच के पॉलीथिन के बैग  में एक परत भूसा बिछाते है फिर इसके ऊपर बीज बिखेर देंते है उसके ऊपर फिर भूसे की परत डाला जाता है। 2 पर्तो के बीच का अंतर 3 से 4 इंच का होना चाहिए। इस प्रकार सतह में बिजाई की जाती है। एक पॉलीथिन के बैग में लगभग 3 से 4 किलोग्राम गिला भूसा भरा जाता है। उसके ऊपर बीज बिखेर देते हैं। बिजाई के बाद पॉलीथिन बैग्स को एक अंधेरे कमरे में रख देते हैं जिसमें 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 80 से 90% नमी बनाए रखना चाहिए। बिजाई किए गए बैग्स में 15 से 20 दिन बाद भूसे पर इस सफेद कवक जाल दिखाई देते हैं। ऐसी अवस्था केसिंग परत चढ़ाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।केसिंग के लिए केसींग मिश्रण को 1 सप्ताह पहले तैयार करते हैं। जिसके लिए 3/4 भाग  मिट्टी एवम 1 / 4 भाग बलुई  मिट्टी को मिलाएं तथा इस मिश्रण में वजन का 10% चाक पाउडर मिलाया जाता है। फिर मिश्रण को 4% फार्मलीन व 0.1% बविष्टिन के  से स्ट्रलाइज करते हैं फिर उसे 24 घंटे बाद परत को उलट-पुलट देते हैं जिससे फॉर्मलीन की गंध खत्म हो जाए और तैयार मिश्रण को बैग के मुंह को खोल कर उसके ऊपर 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी परत में चौरस करके बिछा देते हैंi इस समय तापमान को 30 से 35 डिग्री सेल्सियस और नमी 80 से 90 बनाए रखते हैं। 10 से 12 दिन में कवक जाल और बीज तंत्र में फैल जाते हैं। प्रतिदिन पानी का छिड़काव के कमरे में ताजी हवा जाती है जिससे 3 से 5 दिनों बाद दूधिया मशरूम की कलिकाएं निकलना प्रारंभ कर देती हैं जो 1 सप्ताह में पूर्ण मशरूम का रूप ले लेती है।दूधिया मशरूम को उगने में 20 से 25 दिन का समय लगता है तथा उत्पादन 30 से 35 दिन के बाद प्रारंभ हो जाता है जो अगले 40 से 45 दिनों तक जारी रहता है।

मशरूम उत्पादन के बाद भूसे को पशुओं को खिलाने से लिए प्रयोग किया जाता है। जिससे उनके स्वास्थ्य और दूध की गुणवत्ता बढ़ जाती है। इस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से दूधिया मशरूम की खेती कर एक किलोग्राम भूसे से एक किलोग्राम दूधिया मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है।

इस प्रकार प्रति किलोग्राम 30 से 35 की लागत लगाकर 100 से 120 रूपया प्रति किलोग्राम की दर से बेच कर 60 दिनों में अपनी आय  दोगुनी नहीं, तीन गुनी कर सकते हैं।

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