बेटियां पराई नहीं
अब समय आ गया कि गढ़े हम कुछ नए मुहावरे
बेटियां पराई नहीं
सगी से कुछ ज्यादा हैं
जिनपर विश्वास है हमें हमारे संस्कारों और मूल्यों के वहन का
वो दूर-दूर तक हमारी खुशबू फैलाती हैं
अपनी उपस्थिति जताती
अपनी इयत्ता का भान कराती
समय की नब्ज पर मजबूत पकड़ रखती
वो परंपराएं तोड़ती और बनाती हैं |
कभी त्याग का प्रतिमान रचती
भाई-बहनों का जीवन संवारने के लिए
रह जाती हैं अविवाहित
कि बंट न जाए अधिकार और कर्त्तव्य के मध्य
समाज के व्यंग्य और तानों से अक्षुण्ण
रीति-रिवाज को ठेंगा दिखाती,लिखती नई कहानी
अपने कर्त्तव्यों का दायरा बढ़ाती
शामिल करतीं अपने माता-पिता को
आगे बढ़कर उनके रिटायरमेंट का स्वागत करती हैं
समय-समय पर उनका हेल्थ चेकअप करवाती
उनकी रुचियों और सेहत का भरपूर ध्यान रखतीं
वे सुयोग्य संतान का दायित्व निभाती हैं
और नही खलने देती एक पल को भी
राजा बेटा की कमी ।
-आराधना श्रीवास्तव,
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