कौन है अपाहिज ?
बोल नहीं सकता सत्य
तो वह गूँगा है।
ऊँची आवाज लगाने से क्या ?
सुन नहीं सकता सच
तो वह बहरा है।
कान लगाकर सुनने से क्या ?
चल नहीं सकता सत्य पथ पर
तो वह लंगड़ा है ।
मटक -मटककर चलने से क्या ?
देख नहीं सकता अच्छाई को
तो वह अँधा है।
टुकुर- टुकुर देखने से क्या ?
हाँ, जुबान नहीं है लोगों की
पर इशारों इशारों में सच कहते हैं।
बोलते नहीं कुछ भी
पर मन ही मन सत्य गुनते हैं।
अपंग हैं कुछ मन से
पर लचक-लचककर सच संग चलते हैं ।
ज्योति नहीं आँखों में तनिक भी
पर अंत:र्दृष्टि से सच देखते हैं ।
तुम लाचार समझते रहो उन्हें
तेरे ना समझने से क्या ?
( पुष्प रंजन कुमार, बिहार )
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