एक सीख
ब्रह्मचारी जी खूब जोर से चिल्ला रहे थे- ‘अब मेरा बेटा दामोदर पूरे गांव को सिखलायेगा।
उनकी आवाज सुनकर मुहल्ले के सभी लोग इकट्ठे हो गये थे। सभी के अन्दर यह उत्सुकता थी। आज पंडित जी इतना जोर से क्यों चिल्ला रहे हैं? किसी को माजरा समझ में नहीं आ रहा था।’ तथी पास में खड़ा ब्रह्मचारी जी का पड़ोसी ने कहा ‘देखों भाईयों! आज इनका लड़का मुझे बहुत ही अपमानित किया है।
समाज में मुझे अनायास ही गाली देने लगा, जब मैं आकर इनको बताया तो ये खुद ही चिल्ला रहे हैं। कहाँ अपने लाड़ले को समझायेंगे। कह रहें हैं कि मेरे पास तीन जवान लाठिया हो गयी है, मैं किसी से डरने वाला नहीं हूँ। अब आप ही बताइये उलाहना देकर मैंने कोई गलती की है।’ माजरा समझते देर नहीं लगी और भीड़ धीरे-धीरे सरकने लगी। लोग दबी जबान से कह रहे थे कि ‘लंगा से खुद भला।’ अपने बच्चे को अच्छे संस्कार नहीं दे रहे है। किसी दिन इनके सिर पर आयेगा तब पछतायेंगे।
‘न योनि नपि संस्कारों, न श्रुतेन च संतति:।
कारणानि द्विजत्वस्य दृन्तमेव तु कारणम् ।। (महाभारत)
कोई मनुष्य कुल, जाति और क्रिया के कारण ब्राह्मण नहीं हो सकता है। यदि चाण्डाल भी सदाचारी व संयमी है तो वह भी ब्राह्मण होता है।
ब्राह्मण कुल में पैदा होकर दामोदर मांस, मछली, शराब आदि का सेवन करता है। गांव के लोग इन्हें ब्रह्मचारी जी कहकर आदर भाव देते हैं। जब ये अपने ही कुल के लोगों का सम्मान नहीं करेंगे तो इनकी बड़ी दुर्गति होगी।
तभी एक सज्जन ने सुझाव दिया देखिये, पंडित जी! जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा। आप बर्दाश्त कीजिए। जो भी व्यक्ति उस भीड़ समूह में था सभी लोग दामोदर के क्रियाकलाप से पीड़ित थे। लेकिन किसी में साहस नहीं था कि दामोदर का विरोध कर सके। इसका कारण यह था कि क्षेत्र भर के लोफर लड़कों से उसकी दोस्ती थी वह किसी का कुछ भी करा सकता है।
समय की गति अपने चाल से निरन्तर बढ़ती जा रही थी। एक दिन ब्रह्मचारी जी की पत्नी अपने बच्चों के क्रियाकलाप को देखकर कुढ़ते-कुढ़ते ईश्वर को प्यारी हो गयी, अब परिवार में ब्रह्मचारी जी और उनके तीन बेटे रह गये थे। घर में रसोई बनाने वाला भी कोई नहीं था। ब्रह्मचारी जी अपने छोटे बेटे
दामोदर को बहुत मानते थे और उनके इसी लाड प्यार ने दामोदर को बिगाड़ दिया था।
में सुबह उठकर चाय पीने के बाद अखबार पर नजर दौड़ाई तो देखा एक खबर छपी थी-एक कलियुगी श्रवण कुमार ने अपने पिता की गर्दन उड़ाई। मैं हतप्रभ हो गया। जब समाचार पढ़ने लगा तो मेरी आत्मा कांप उठी। दामोदर ने अपने पिता की गर्दन चाकू से नहीं बल्कि पशुओं को चारा काटने वाली गडासी से उड़ाई थी। खबर के अनुसार दोनों बाप-बेटे आपस में वाक्य युद्ध करते रहे लेकिन कोई उन लोगों के बीच में दखल नहीं दिया। पता नहीं कब दामोदर अपने पिता को काट दिया। यह कोई नहीं जान पाया। जब झगड़ा शान्त हो गया तो दामोदर अपना बैग लेकर भागने लगा। पड़ोसियों को शक हुआ देखा ब्रह्मचारी जी की लाश खून से लथपथ पड़ी है। तुरन्त पुलिस को फोन किया गया और दामोदर पड़ोस के एक गांव में ही पकड़ लिया गया। अब उस घर की हालत यह थी कि ब्रह्मचारी जी का बड़ा तथा मझला लड़का कलकत्ता के एक अस्पताल में है। बड़ा लड़का कई महीनों से कोमा में है और मझला लड़का उसकी देखभाल कर रहा है। छोटा लड़का अब जेल की सलाखों में है। आज उनकी अर्थी को कंधा देने वाला अपना कोई नहीं है। तीन लड़कों के बाप को मुखाग्नि भी पड़ोसी ने दी। जिस पड़ोसी को ब्रह्मचारी जी और उनके लड़के सिखा रहे थे वहीं पड़ोसी गांव के लोगों के सहयोग अन्तिम क्रिया करके अफसोस कर रहा था। उसके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा- ‘दामोदर पूरे गांव को सिखाते-सिखाते संपूर्ण क्षेत्र व समाज को एक नई सीख दे गया।
वह यह कि जो माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं देते उनकी ऐसी दुर्गति होती है। इसीलिए कहा गया है कि ‘अच्छे संस्कार के बिना परिवार व समाज दोनों नष्ट हो जाते हैं।
(डॉ0आदित्य कुमार ‘अंशु ,बलिया )
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