निर्गुण
कवनी नगरिया हमरे संवरिया
छोड़ि के बाग तड़ाग रे
गइले लिहले सुहाग रे
घरवा लियाइ के हमें बइठवले
हथवा के मेंहदी कबो ना छुटले,
डंसलस यमराजी नाग रे
गइले लिहले सुहाग रे
सूरुज चनरमा चमकी अकासे|
बाकिर सेनुरवा रही नाहि माथे
कइसन ह ई अनुराग रे
गइले लिहले सुहाग रे
कवनों चलाकी कामे ना आई |
ढूहा पे अपने खुदे भहराई
उड़ि उड़ि बोले काग रे
गइले लिहले सुहाग रे
मूअल नइखन बदलल मकान बा |
तिकवत हमके उनुके परान बा
खेलब उनुका से फाग रे
गइले लीहले सुहाग रे।
( डाॅ0 भोला प्रसाद आग्नेय )
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