गांधी का सपना
गांधी जी
दुनिया से चलते चलते
तुम रह गए कहते
आजादी
नीचे से शुरू होनी चाहिए
मगर आजादी
दो बैलों के कन्धों पर चढ़ कर
दिल्ली की रंगीन गलियों में
खो गई
और गांवों की दर्द भरी शाम
इंतजार करते करते
अंधेरी रात बन कर
सो गई
लेकिन बैल,बैल ही होता है
दोनों एक-दूसरे से
बिछुड़ गए
अवसर देख गाय बाछा
दिल्ली की ओर
मुड़ गए
लोकतंत्र के हाते में
दोनों खूब चरते रहे
और पीकर आ.सु.का.जहर
एक एक कर
हम मरते रहे
हल के बल हल ढूंढ़ते हुए
हलधर ने
गाय बाछा को मार भगाया
फिर चम्पत हुआ हलधर भी
बचा खुचा लेकर
जो भी पाया
फिर आजादी
एक पंजे पर नर्तन करने लगी
गांधी जी
दुनिया से चलते चलते
तुम रह गए कहते
आजादी
नीचे से शुरू होनी चाहिए
मगर आजादी
दो बैलों के कन्धों पर चढ़ कर
दिल्ली की रंगीन गलियों में
खो गई
और गांवों की दर्द भरी शाम
इंतजार करते करते
अंधेरी रात बन कर
सो गई
लेकिन बैल,बैल ही होता है
दोनों एक-दूसरे से
बिछुड़ गए
अवसर देख गाय बाछा
दिल्ली की ओर
मुड़ गए
लोकतंत्र के हाते में
दोनों खूब चरते रहे
और पीकर आ.सु.का.जहर
एक एक कर
हम मरते रहे
हल के बल हल ढूंढ़ते हुए
हलधर ने
गाय बाछा को मार भगाया
फिर चम्पत हुआ हलधर भी
बचा खुचा लेकर
जो भी पाया
फिर आजादी
एक पंजे पर नर्तन करने लगी
बड़े बड़ों का मान मर्दन
करने लगी
उसके बाद अचानक आजादी
चक्र के चक्रव्यूह में फंस गई
पढ़ें लिखे नवजवानों की जिंदगी
आग के गोले में धंस गई
फिर तो आज़ादी को
कई पार्टियां मिलकर
फुटबाल की तरह
किक मारने लगीं
एक किक ऐसा लगा
कि आजादी का फुटबॉल
कमल की ओर भगा
लेकिन कमल भी
कर्मचारियों का पेंशन घोंट गया
और आजादी का फुटबॉल
फिर पंजे पर लोट गया
उस पंजे के नीचे
शुरू हुआ
कभी हवाला कभी घोटाला
आजादी सोचने लगी
पड़ गया किस गूंगे से पाला
अब तो आज़ादी
कीचड़ से ऊपर उठकर
कमल के आगोश में है
और जनता भी
पहले की अपेक्षा होश में है
अब केवल यही देखना है
कि तुम्हारा सपना
कब होता है अपना।
( डॉ भोला प्रसाद आग्नेय , बलिया )
Facebook Comments