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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 12 Sep 5:31 PM |   339 views

तोरिया की बुआई का सही समय मध्य सितम्बरः प्रो. रवि प्रकाश

 
बलिया – आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या  द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश  मौर्य ने यह सलाह देते हुए बताया कि जो किसान किसी कारण से खरीफ मे कोई फसल नही ले पाये है, वे खाली पडे़  खेत मे तोरिया /लाही की फसल ले सकते है इसकी खेती करके अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है। 
 
 तोरिया खरीफ एवं रबी के मध्य में बोयी जाने वाली तिलहनी फसल  है।  । इसके लिए  बर्षात  कम होने  के साथ समय मिलते ही खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयाँ देशी हल, कल्टीवेटर/हैरो से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी बना ले । तोरिया की प्रमुख प्रजातियाँ  टी.9,भवानी, टी.-303,पी.टी.-30, एवं तपेश्वरी है।जो 75से 90दिन मे पक कर तैयार हो जाती है।जिनकी उपज क्षमता 4 से 5 कुन्टल प्रति एकड़  है।तोरिया का बीज 1.5 किग्रा०प्रति एकड़  की दर से प्रयोग करना चाहिए।
 
बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा० बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें। गेहूँ की अच्छी फसल लेने के लिए तोरिया की बुआई सितम्बर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए। भवानी प्रजाति की बुआई सितम्बर के दूसरे पखवारे में ही करें।उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए, यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके तो 16 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ मे  करे। 44किग्रा. युरिया ,125किग्रा सिंगल सुपरफास्फेट प्रति एकड़  की दर से  अंतिम जुताई के समय  खेत मे मिला दे।  बुआई के 25 से 30 दिन के बीच पहली सिचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में 44किग्रा. यूरिया प्रति एकड़  मे देना चाहिए। बुआई 30 सेमी० की दूरी पर 3 से 4 सेमी० की गहराई पर कतारों में करनी  चाहिए एवं पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिए।घने पौधों को बुआई के 15 दिन के अन्दर निकालकर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी० कर देना चाहिए तथा खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराई-गुड़ाई भी साथ में कर देनी चाहिए।
 
फूल निकलने से पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति तोरिया (लाही) विशेष संवेदनशील है अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना आवश्यक है।बर्षा होने से हानि से बचने के लिये  उचित जल निकास की व्यवस्था करे।
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