संत कबीरदास
जब कोई महामानव धरती पर अवतरित होता है ,तो उसके प्रारंभिक काल से ही असमान्य घटनाएँ घटित होने लगती है | कबीर दास के साथ भी ऐसा ही हुआ |इनके जन्म के सम्बन्ध बहुत से बातें कही जाती है | कबीर 15 वी सदी के रहस्य वादी संत और कवि थे | वे हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे |
संत कबीरदास अपने जीवन के प्रारंभिक काल से ही तात्कालीन समाज में प्रतिष्ठित कुप्रथाओं ,अंध – विश्वासों और आडम्बरों को देखा और उनसे आहत भी हुए | कबीरदास ने सत्य को जाना ,जो अकाट्य है, और दृढ़ता से समाज को बताने के लिए आगे बढे | चुनौतियों को स्वीकार करते हुए कठिनाईयों की परवाह किये बिना जो जाने उसको बेबाक रूप से कहे |हिन्दू ,मुस्लिम ,सिक्ख ,इसाई मजहबों में ब्याप्त आडम्बरों के लिए उन्होंने आलोचना की |
संत कबीर ने जो भी कहा वह ‘ बीजक ‘नामक ग्रन्थ में संकलित है |बीजक कबीर के उपदेशो और विचारों का सर्वोच्य प्रमाणिक ग्रन्थ है | कबीर के उपदेश न वेदांत , न सांख्य , न न्याय , न मीमांसा बल्कि उनके मौलिक चिंतन पर आधारित है |बीजक में आध्यात्मिक ,सामाजिक ,धार्मिक तथा दार्शनिक तत्वों को सार्वभौमिक रूप से प्रतिष्ठित किया गया है |
संत कबीर ने कहा कि सम्पूर्ण मानव जाति एक है और मानव समाज अविभाज्य है ,जन्म के आधार पर किसी को अछूत कहना अपराध है | धर्म तो नैतिकता है |वेड ,पुराण ,कुरान आदि सभी धर्म ग्रंथो का सार तत्व एक है –
जो तू चाहे मुझको छाड़ सकल की आस
मुझ ही ऐसा होय रहो , सब कुछ तेरे पास |
इनका मानना था कि कोई भी प्राणी कष्ट नही चाहता है |फिर भी दूसरों को कष्ट देना अमानवीय व्यवहार है |यज्ञ , धर्म ,कुर्बानी के नाम पर जीवो की हत्या करना पाप है |
” बकरी पाती खात है , ताकि काढी खाल
जे नर बकरी खात हैं ,तिनको कौन हवाल |
कबीरदास जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे |उनके शब्दों में –
” पाथर पूजे हरि मिलेेे , तो मै पूजूँ पहार
ताते यह चकिया भली , पीस खाय संसार |
उन्होंने मुस्लिमो के बाह्य आडम्बरो पर भी कुठारा घात किया |
काँकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय |
संत कबीर दास जी अपनी वाणी से आध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को जन – जन में पहुचाने का सफल प्रयास किया |परमात्मा एक है , और सर्वत्र है—-
जासो नाता आदि का विसरि गया सो ठौर
चौरासी के वसि परे कहे और की और
साहब सबको देखत हैं अलख लखो अलख लखों
लखों निरंजन तोहि
हौ कबीर सबको लखौ मोको लखै ‘ न कोहि |
माना जाता है कि इन्होने आधुनिक हिंदी को नई दिशा दी |फिर भी इनकी साहित्यिक भाषा को सधुकड़ी और पंचमेल खिचड़ी कहा जाता है | यह सर्व विदित हैं कबीर पढ़े – लिखे नही थे |” मसि कागद छुओं नहि कलम गहो नहि हाथ ” ये पक्तियां सिद्ध करती है जो उन्होंने अपने पढने – लिखने के सम्बन्ध में कहें थे |
संत कबीर का प्राकट्य वाराणसी में हुआ था | अत : इनके साहित्य में भोजपुरी भाषा का विशेष प्रभाव है |कुछ लोग तो कबीरदास जी को भोजपुरी का साहित्यकार मानतें हैं ,इसलिए इनके प्राकट्य दिवस 5 जून को भोजपुरी दिवस के रूप में मनाया जाता है |
( नरसिंह )