अच्छा दिन ( पंडित उमाकांत शास्त्री )
जब तक दरबारी कवियों ने , किया है खुद पर नाज
बेचा है रचनाओं को , बनाकर लहसुन प्याज |
तब तक देश गुलाम रहा है , मानवता भी रोई है
जयचंदों ने स्वर्णकमण्डल , घी शक्कर मे डूबोई है|
राष्ट्रद्रोह की नागफनियों ने , अपना वंश बढ़ाया है
वटबृक्षों पर बगुलों ने भी , ठाठ से माल उड़ाया है|
हँसराज ने मोती त्याग के , घांस की रोटी खाई है
मां ने ममता पीठ बांधकर , वीरगती अपनाई है|
बारबार इतिहास है कहता , अच्छा दिन तभी आता है
लेखनी सपूत जब क्रांतिदूत , बनकर परिवर्तन लाता है |
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