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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 11 Jul 2020 11:49 AM |   704 views

भारतीय स्वतंत्रता के बाद शिक्षा की संवैधानिक दशा और दिशा

 
संविधान निर्माताओं ने शिक्षा विषयक प्रावधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत आर्टिकल 45 के तहत वर्णित किया। विदित है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत वर्णित विषय किसी भी न्यायालय में चैलेंज नहीं किए जा सकते हैं । यदि किसी ने कर भी दिया तो वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं ।
 
हमने  39d प्रावधान के तहत समान कार्य के लिए समान वेतन के परिणाम को देखा है ।शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत रखा जाना एक विचारणीय प्रश्न है।यह संविधान निर्माताओं की सोच पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है ।
 
86 वां संशोधन 2002 के विषय वस्तु पर आते हैं- भारतीय संविधान का 86 वां सनशोधन 2002/12 दिसम्बर 2002
 
“इसे भारतीय गणतंत्र के 53 वें वर्ष में संसद द्वारा अधिनियमित किया गया है:
वस्तुओं और कारणों का विवरण-
 
अनुच्छेद 45 में निहित भारत के  संविधान में संविधान के प्रावधान के 10 साल के भीतर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया था। हम इस प्रावधान को अपनाने के 50 साल बाद भी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके। 1986 में शिक्षा की राष्ट्रीय नीति की घोषणा के बाद इस आयु वर्ग में सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य शुरू किया गया था। भारत सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस जनादेश को पूरा करने के लिए कई प्रयास किए हैं और, हालांकि महत्वपूर्ण सुधार किए गए थे ।विभिन्न शैक्षिक संकेतकों में देखा गया, सार्वभौमिक और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का अंतिम लक्ष्य अभी भी हासिल नही किया जा सका है।  
 
 इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए यह महसूस किया जाता है कि  संविधान के मौलिक अधिकारों से संबंधित स्पष्ट प्रावधान किया जाना चाहिए।
 
 मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने की दृष्टि से, संविधान (83 वां संशोधन) विधेयक 1997 को संसद में एक नया लेख, अर्थात्, अनुच्छेद  21-A, जो कि सभी आयु वर्ग के बच्चों पर दिया गया है, सम्मिलित करने के लिए पेश किया गया था, 6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
 
मानव संसाधन विकास विभाग के संसदीय स्थायी समिति द्वारा उक्त विधेयक की जांच की गई  और इस विषय को भारत के विधि आयोग ने अपनी 165 वीं रिपोर्ट में निपटा दिया।
 
 उपर्युक्त वर्णित तथ्यों के अंतर्गत स्पष्ट स्वीकार किया गया है कि 
 
 (a) 10 साल के भीतर 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया था किंतु हम इस प्रावधान को अपनाने के 50 साल बाद भी इस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सके। 50 साल एक लंबी अवधि होती है। 
 
 ( b) ऐसे में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में अधिनियमित किया गया है। 
आज भी शिक्षा नीति निर्धारकों की चापलूस  बन कर सांस ले रही है ।आज भी शिक्षा प्रयोग के दौर से गुजर रही है। मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा ।आज भी शिक्षा की जो स्थिति, शिक्षकों की स्थिति , सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति ,सरकारी विद्यालयों की स्थिति हमारे सम्मुख है।
 
शिक्षा नीति निर्धारकों के लिए उपेक्षित क्यों रहा है ? वर्तमान केंद्र सरकार ने वर्ष  2020 में एक नई शिक्षा नीति लेकर आयी प्रश्न  यह है कि शिक्षा कब तक प्रयोग का विषय बनी रहेगी ?
 
( कृपा शंकर पाण्डेय , बेतिया बिहार )
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