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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 9 Jun 2:32 PM |   380 views

अदरक की उन्नत खेती

 
देवरिया ( कृषि विज्ञान केंद्र )– अदरक एक महत्वपूर्ण मसाले वाली नकदी फसल है जिसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ जिलों में घरेलू उपयोग हेतु तथा व्यापारिक स्तर पर उगाते है | पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों में जहा जल जमाव न होता हो तथा जीवांश युक्त बलुई दोमट मिट्टी या कैल्केरियस (भाट) मिट्टी में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है | इसकी खेती छाया प्रदान करने वाले फसलो जैसे अरहर, मक्का, केला आदि अन्त: फसल के रूप में बागों की खली जगह में तथा गर्मी में मचान पर लगाये गये कद्दू-वर्गीय फसलो जैसे करेला, कुन्दुरु, परवल, लौकी, नेनुआ आदि के मचानों के नीचे करके दोहरा लाभ प्राप्त कर सकते है |
 
पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई क्षत्रों में नदिया एवं रियो-डी-जनिरिओं बहुत लोकप्रिय किस्मे है | पश्चिम बंगाल की प्रजाति नदिया की उपज 240-250 कु0 प्रति हे0 तथा सोंठ 20.2 प्रतिशत होती है जबकि ब्राजील देश की रियो-डी-जनिरिओं की उपज क्षमता 230 कु0/हे0 तथा 18.6 प्रतिशत सोंठ प्राप्त होती है | इसके आलावा सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि, वरदा आदि उन्नतशील प्रजातिया भारतीय मसाला अनुसंधान सस्थान, कालीकट, केरल से विकसित की गयी है |
 
गर्मी से पहले वर्षा होने के बाद भूमि को चार या पांच बार अच्छी  तरह जोतना चाहिए | बुआई के समय 20-25 टन/हे0 की दर से अच्छी तरह अपघटित गोबर या कम्पोस्ट को बुआई के पहले खेत में बिखरे देना चाहिए या बुआई के समय गढ़ड़ो में डाल देना चाहिए | बुआई के समय 2 टन /हे0 नीम केक का उपयोग करने से राईजोम गलन रोग/सुत्रक्रिमियो का प्रभाव कम होता है जिससे उपज बढ़ जाती है | अदरक के लिए संस्तुत उर्वरक की मात्रा 75 किग्रा नाईट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस और 50 किग्रा पोटाश प्रति हे0 है | इसके लिए बुआई के समय लगभग 110 किग्रा डाई अमोनियम फास्फेटतथा 100 किग्रा म्यूरेट आफ पोटाश को बुआई के समय खेत में मिला देना चाहिए तथा 150 किग्रा यूरिया को तीनो भागो में बाट कर खडी फसल में देना चाहिए | प्रत्येक बार उर्वरक डालने के बाद उसके ऊपर मिट्टी चढ़ानी चाहिए | जिंक की कमी वाली मिट्टी में 6 किग्रा जिंक/हे0 (30 किग्रा जिंक सल्फेट/हे0) डालने से अच्छी उपज प्राप्त होती है |
 
अदरक की बुआई का उपयुक्य समय मई-जून (मानसून से पहले वर्षा के समय) होता है | सिंचाई आधारित दशा में फरवरी के मध्य या मार्च के प्रारम्भ में इसकी बुआई की जा सकती है | बुआई हेतु अच्छी तरह भंडारित किये गए प्रकंदो को 2.5-5.0 सेमी लम्बाई के 20-25 ग्राम के टुकड़े जिसमे कम से कम एक लाख आख अवश्य हो, को अलग करके बीज बनाया जाता है | एक हेक्टेयर खेत की बुआई हेतु 20-25 कु0 बीज प्रकन्द को 30 मिनट तक 0.3 प्रतिशत (3 ग्राम/लीटर पानी) मैनकोजेब के साथ उपचार करके 3-4 घंटे छायादार जगह में सुखाकर 40-25 सेमी मेड बनाकर या समतल खेत में 20-25 सेमी की दुरी पर गढ्डे में रखकर उसमे खाद (एफ वाइ एम) तथा मिट्टी डालकर जमीन के समतल कर देना चाहिए | बुआई से समय 10-12 टन/हेक्टेयर की दर से हरे पत्तो से मल्चिंग करना चाहिए |
 
बुआई से 40 और 90 दिनों के बाद घासपात निकालने और उर्वरक डालने के तुरंत बाद 7.5 टन/हेक्टेयर की दर से दोबारा मुल्चिंग करने से मिट्टी में कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है और फसल काल के बाकी सयम आर्द्रता बनी रहने से उपज  वृध्दि पाई गयी है |
 
बुआई से 40 और 90 दिनों के बाद घासपात निकालने तथा उर्वरको के डालने के बाद यदि राईजोम दिखने लगे तो उसके ऊपर मिट्टी डालकर ढक देना चाहिए ताकि वह अच्छी तरह वृध्दि कर सके | इस प्रकार अदरक खेती में अनुमानत: प्रति हेक्टेयर 300000 रूपए की लागत से 800000 रूपए की आय प्राप्त की जा सकती है |
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