भूख और रोटियां
भूख से तड़पा है बच्चा माँगता कुछ रोटियाँ,
एक निवाले के लिये दर-दर से मांँगे रोटियाँ।
है नहीं कोई जहाँ में जिसको अपना कह सके,
ढूंढती आँखें उसे अब जो खिला दें रोटियाँ।।
दर्द उसने ही दिया जो जन्म देकर मर गई,
मैं अकेला इस जहाँ में जान मेरी रोटियाँ।।
सीने से चिपका के मुझको दे गई कैसी दुआ,
आज मैं दर- दर पे भटकूँ चाह है बस रोटियाँ।।
छोड़ मुझको इस जहाँ में क्यूँ सभी तड़पा रहे,
कोई अपना ले जहाँ में दे के मुझको रोटियाँ।।
आसरा मिलता नहीं ठोकर हूँ खाता रात- दिन,
एक निवाला प्यार का बनती सहारा रोटियाँ।।
भूख से बेहाल होकर रो रहा हूँ आज मैं,,
महल चौबारे पे देखो फेंकी जाती रोटियाँ।।
जिंदगी को खाक करने की है जिसमें आग भी,
आग ऐसी ही बुझाती *यश* सदा ये रोटियाँ।
(यशपाल सिंह चौहान, असिस्टेंट कमांडेंट , सीमा सुरक्षा बल ,नई दिल्ली )
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