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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 11 Apr 1:38 PM |   553 views

टपक सिचाई प्रणाली

कृषि के लिए जल एक महत्वपूर्ण निवेश है |पौधों के लिए जल उतना ही आवश्यक है जितना हमारे लिए |यदि फसलों को सही मात्रा में और सही समय पर पानी न मिले तो वे सूख जातें हैं |देश के समग्र जल संसाधनों की 80 % से अधिक जल कृषि के लिए खपत होती है |देश की करीब सवा करोड़ आबादी को भर पेट भोजन एवं पोषण प्रदान करने के लिए उपयुक्त सिचाई महत्वपूर्ण है |देश में सिचाई के लिए पानी का कुशल उपयोग नही हो रहा है एवं बाग़ – बगीचों में सीधे पानी लगाने यानी सतही सिचाईं विधि से 60 % भाग किसी न किसी कारण बर्बाद हो जाता है |कई प्रयासों के बावजूद भी केवल 6 करोड़ हैक्टेयर  क्षेत्र पर सिचाई की व्यवस्था हो पायी है |जबकि 11 करोड़ हैक्टेयर क्षेत्र वर्षा आधारित सिचाई व्यवस्था पर निर्भर है |अत : समय आ चूका है कि वर्षा जल का अपव्यय रोकते हुए संचय करें तथा वर्षा जल को वर्ष भर कुशलता से उपयोग करें |

जल का कुशल उपयोग कैसे करें ?

फसलों की सिचाई में जल उपयोग की कुशलता बढाने का एक बेहद महत्वपूर्ण और कारगर तरीका है – टपक सिचाई या ड्रिप सिचाईं , जिसे सूक्ष्म सिचाईं या माइक्रो इरीगेशन भी कहतें हैं |ड्रिप सिचाईं प्रणाली में आवश्यकतानुसार पानी बूंद – बूंद करके सीधे पौधों की जड़ – क्षेत्र में छोड़ा जाता है जिससे पानी बर्बादी नही होती है |इस प्रणाली से पानी की 40 – 60 % बचत होती है |

ड्रिप सिचाईं प्रणाली क्या है ?

ड्रिप सिचाई के तहत प्लास्टिक पाईपों द्वारा पौधों की जडो में सीधा तथा सामान रूप से सिचाई के कम पानी का प्रयोग किया जाता है |ड्रिप सिचाई में जल के साथ -साथ उर्वरक तथा जलघुलित आवश्यक रसायन भी सीधे पौधों तक पहुँचाये जा सकते हैं |  जल की बचत के साथ – साथ उर्वरक की भी पर्याप्त बचत होती है |

ये विधियां मृदा के प्रकार , खेत के ढाल , जल के स्रोत और किसान के योग्यतानुसार अधिकतर फसलों के लिए अपनायी जा सकती है |इसकी सिचाई क्षमता 80 – 90 % हो सकती है |फसलों की पैदावार बढाने के साथ – साथ इन विधियों से उपज की गुणवत्ता , रसायन एवं उर्वरकों का दक्ष उपयोग जल के विक्षालं व प्रवाह में कमी , खरपतवारों में कमी और जल की बचत सुनिश्चित की जा सकती है |   

टपक सिचाईं के लाभ –

1 – पानी की निश्चित बचत , केवल जड़ों में ही गिरना |

2 – समय से जल्दी उपज |

3 – श्रम में बचत , नालियाँ बनाने की बार – बार जरुरत नही |

4 – केवल जड़ों को पानी देने से खर – पतवार नियंत्रण |

5 – लवणीय जल सिचाई के लिए संभव |

6 – समतल भूमि पर सामान इकाई से सिचाई |

7 – पैदावार व गुणवत्ता  में अविश्वसनीय वृद्धि |

8 – समय की बचत |

9 – सिचाई जल द्वारा मृदा कटान नही |

टपक सिचाई प्रणाली का विभिन्न फसलो पर प्रभाव – 

फसल          जल बचत  %         उपज में वृद्धि %

केला                  45                         52

फूलगोभी          68                         70 

मिर्च                 68                         28 

खीरा                56                          45 

अंगूर                48                         23 

मूंगफली           40                       132 

अनार               45                         45 

मीठा नीबू         61                         50 

टमाटर             42                         60 

तरबूज              66                        19 

टपक सिचाई प्रणाली के लिए उपयुक्त फसल – 

औधोगिक फलदार फसल – अंगूर , केला अनार , संतरा , आम , मौसमी , शरीफा , अमरुद , अन्नास . काजू , पपीता , आवला लीची ,खरबूज आदि |

सब्जी – टमाटर , मिर्च , शिमला मिर्च , पत्तागोभी ,  फूलगोभी ,प्याच ,भिन्डी , बैगन , करेला तरोई , खीरा ,मटर , पालक , कद्दू आदि |

नकदी फसल – गन्ना ,कपास , सुपारी ,स्ट्राबेरी आदि |

फूल – गुलाब , गेंदा , आर्किड , चमेली , डहेलिया , जरवेरा आदि |

प्लांटेशन – रबर , चाय , कॉफ़ी , नारियल आदि |

मसाले – धनिया ,हल्दी , लौंग , मेंथी  आदि |

तिलहन फसले – सूर्यमुखी , अलसी ,मूंगफली आदि |

जंगली फसल – बांस 

औषधीय फसलें – एलोवेरा , सहजन  , लेमन ग्रास , स्टीविया , मेंथी  आदि |

( डॉ शुभम कुलश्रेष्ठ ,असिस्टेंट प्रोफ़ेसर , रवीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी ,रायसेन ,मध्यप्रदेश  ) 

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