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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 10 Sep 2019 1:06 PM |   1161 views

थोडा जीने का मन हो रहा है

 

आज पीने का मन हो रहा है 

थोडा जीने का मन हो रहा है 

बेरुखी जिन्दगी अश्क देती रही 

दर्द पीने का मन हो रहा है 

कतरा कतरा नही हम पीयेंगे 

टुकड़ो -टुकडो मे अब ना   जियेंगे

खुद से मिलने का मन हो रहा है 

वो ना सोचे तो क्यू मै ही सोचू 

डोर रिश्तो की क्यू मै ही खीचू 

तनहा रहने का मन हो रहा है 

थोडा जीने का मन हो रहा है 

ख़त उसने वफा के जलाये

कसमे- वादे नही काम आये 

भूल जाने का मन हो रहा है 

अब गली क्या शहर छोड़ देंगे 

रुख यादो के सब मोड़ देंगे 

आज पीने का मन हो रहा है 

थोडा जीने का मन हो रहा है 

 ( डॉ नरेश सागर, हापुड़  ) 

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