थोडा जीने का मन हो रहा है
आज पीने का मन हो रहा है
थोडा जीने का मन हो रहा है
बेरुखी जिन्दगी अश्क देती रही
दर्द पीने का मन हो रहा है
कतरा कतरा नही हम पीयेंगे
टुकड़ो -टुकडो मे अब ना जियेंगे
खुद से मिलने का मन हो रहा है
वो ना सोचे तो क्यू मै ही सोचू
डोर रिश्तो की क्यू मै ही खीचू
तनहा रहने का मन हो रहा है
थोडा जीने का मन हो रहा है
ख़त उसने वफा के जलाये
कसमे- वादे नही काम आये
भूल जाने का मन हो रहा है
अब गली क्या शहर छोड़ देंगे
रुख यादो के सब मोड़ देंगे
आज पीने का मन हो रहा है
थोडा जीने का मन हो रहा है
( डॉ नरेश सागर, हापुड़ )
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