Friday 29th of March 2024 08:07:05 PM

Breaking News
  • आयकर बिभाग के नोटिस पर कांग्रेस आग बबूला , अजय माकन बोले – यह टैक्स terirism|
  • कंगना ने शुरू किया चुनाव प्रचार , बोली -मै स्टार नहीं आपकी बेटी हूँ | 
  • विपक्ष का योगी सरकार पर वार , पलटवार में बोली बीजेपी – एक अपराधी के लिए इतना दर्द |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 6 Oct 2018 3:37 PM |   915 views

परीक्षा के लड्डू

पप्पू के फर्स्ट क्लास मे पास होने की गूंज हमारे घर तक सुनाई दे रही थी |उसके घर पर बधाई देने वालों का ताता लगा हुआ था |नगाड़े बज रहे थे ,मिठाइयाँ बाटी जा रहीं  थीं |अम्मा -बाबू जी से नजरे बचाकर हमआठों भाई -बहन  भी मिठाई खाने वालों की कतार मे लगे हुए थे |सुनने मे आया था की 60.05% अंक पाकर चौबे जी के छठवे बेटें पप्पू ने इस बार तीसरे अटेम्प मे अब तक के खानदानी इतिहास मे फर्स्ट आने का इकलौता करिश्मा कर दिखाया था  | घर और आस -पास के वातावरण से ऐसा लग रहा था मानो उसने मैट्रिक की नही ,बल्कि कलक्ट्री की परीक्षा पास कर ली हो |इस करिश्मे की एवज मे पप्पू को नई ड्रेस के साथ ही एटलस की एक चमचमाती हुई साईकिल भी मिलने वाली थी |पता चला था कि इसके लिए चौबे जी बैंक से लोन लेने की जुगाड़ मे भी लगे हुए थे |

यह बात अब से लगभग चार दशक पुरानी है |बेसक आज की बात होती तो इतने नंबर लाने वाला पप्पू घर मे पिट रहा होता |गली -मोहल्ले वाले खिल्ली उड़ा रहे होते और उसकी नई मोटर साइकिल भी छिनने पर आ रही होती ,पर हमारे और हमारे कुल -खानदान के लिए तो चाहे वह दौर हो या आज का नया यह चमचमाता युग |हमने कम से कम इस मामले मे कभी न तो अपने बापू को परेशान होने दिया और न ही उन्हें किसी के आगे हाथ फ़ैलानेको मजबूर किया |अक्सर तो हम उनका इस तरह से पूरा ध्यान ही रखते थे कि उन्हें हमारे लिए नई किताबें खरीदने की जरूरत ही नही पड़ती और हम सालों -साल उन्ही किताबों से काम चला लिया करते थे |हमारे अच्छे अंको से उत्तीण होने पर अम्मा -बाबू जी को गली -मोहल्ले के लोगो को मिठाइयाँ खिलानी पड़े अथवा काम वाली बाई या नौकर चाकर किसी ऐसे घर की शरण मे जा पहुचते थे ,जहाँ के लाडलों के कारनामो से उन्हें बख्शीश मिलने की पूरी उम्मीद रहती थी |तब हमे पता नही होता था कि बाबु जी के इतने सारे पैसे बचवाने पर भी रिजल्ट आते ही बाबू जी आग बबूला होकर हमारा सार्वजनिक सम्मान समारोह क्यों शुरू कर देते थे और घर मे हफ्तों क्यों मातम पसरा रहता था ?

उस समय हमे अपने स्कूल की यह बात भी बहुत काबिले तारीफ लगती थी कि वहाँ समाजवादी परम्परा पूरी मुस्तैदी से लागू थी |फेल हो या  पास सभी को एक ही नजरिये से देखा जाता था |किसी से कहीं कोई भेद -भाव नही किया जाता था |रिजल्ट निकलता तो सभी विद्यार्थियों को स्कूल कीओर से पूरी  बराबरी से ही लड्डू बाटें जाते थे |उस वक़्त जात -पात ,ऊँच -नीच ,फेल -पास सभी एक छत के नीचे इकट्ठे होकर लड्डुओं का स्वाद लेते नजर आते |हमे भी इस बात की गौरवपूर्ण ख़ुशी होती कि कम नंबर लाने अथवा फेल होने पर भी हमे अक्सर फर्स्ट डिवीज़न वाले के बराबर ही लड्डू खाने को मिलते |

हमे कई बार दुःख भी होता ,जब हम घसीट -घसीटकर 33% अंक लाकर पास हो जाते |हमे अफ़सोस होता कि अगली कक्षा मे जाने पर अब नई किताबो का रट्टा मारना पड़ेगा ,और बाबू जी के किसी पारिवारिक मित्र के घर आगमन पर उनके सामने नई के नए सिरे से याद करके नई कवितायेँ और कहानियाँ सुनानी पड़ेंगी |वरना पहले तो एक बार की रटी हुई कविता या कहानियाँ ,हम आसानी से कई साल तक चला लिया करते थे | A से Z तक ABCD,Twinkle twinkle little star सुना -सुनाकर वाहवाही लुटना तो हमारे बाएँ हाथ का खेल था |

परीक्षा के दिनों मे पेपर देने के लिए घर से निकलते वक़्त हमे पढाई से ज्यादा माँ द्वारा खिलाई गयी दही -चीनी पर भरोसा रहता और ज्यादा नंबर लाने की चाह मे हम माथे पर लम्बा टीका लगवाने के साथ ही भविष्य होने वाले मधुमेह की परवाह किये बगैर दो -तीन कटोरी तक दही -चीनी या मिठाई के नाम पर 4-5 रसगुल्ले डकार जाते |मुझे वह दिन आज भी नही भूलता जब दसवी मे पांच नंबर के ग्रेस मार्क्स के साथ सेकेण्ड डिवीज़न आने पर मेरी कलाई पर हल्दी छिड़क कर एक चमचमाती खिलौना घडी पहना दी गयी थी और मै कई दिनों तक उसे रात -दिन पहने सभी नाते -रिश्तेदारों के घरो की खाक छानता फिरा था |   

Facebook Comments