Thursday 9th of May 2024 04:37:10 AM

Breaking News
  • कांग्रेस ने हरियाणा की बीजेपी सरकार को बर्खास्त करने और चुनाव कराने की मांग की |
  • बदली रणनीति के साथ up के दंगल में दाव लगा रहीं मायावती , हर वर्ग तक हो रही पहुँचने की कोशिश |
  • मदद के नाम पर थमाया 5 किलो राशन का बोरा , प्रियंका गांधी का मोदी पर तीखा हमला |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 26 Jul 2022 6:39 PM |   265 views

अखबार की हेडलाइन

अखबार की हेडलाइन पर 
कितने ही दिनों से
एक विषण्ण मृत्यु उतर आती है
जैसे समय की पीठ पर सो जाती कोई चिरंतनी
ड्रेसिंग टेबुल पर दिन-रात का अंतहीन खेल
 
अंजलि में आई हुई छोटी-सी मछ्ली आसन्न अंत से उदास
हवा के वेग अनुकूल नाट्य करती, बिना तजे अपनी चंचलता
 
उंगली के बदले लोग बंदूक के इशारे से बताने का पुण्य कमाते हैं
 
श्लथ पड़ा रहूँ शय्या में  
बगल में फैली पड़ी अपनी ही
भुजा देखकर चौंकूँ
कोशबद्ध अनजाने शब्द समान मैं था निरा शरीरधारी असहाय
 
अभी छिटक गए गोमयधुले जल की बूँदों की निशान- बिंदियाँ
धरती की मानवी स्वस्थ संहिताएँ
भाग्यहीन अपने बच्चों सहित
 
हँसिए को भूख क्या है, पता चल जाए तो जमाखोर हो जाएँ
ऐसे के तैसे
 
सुलगो, सुलगकर लिखो : जलो, जलते हुए लिखो
 
मेरे ज़मीर के भीतर मुर्दा धँस रहा है
 
सड़कों पर मासूम खून के छींटों से न लिखो इतिहास
 
प्रत्येक शब्द के बीच उतर आई निस्तब्धता की तरह
प्रत्येक उच्चारण के बीच ठहरे हुए बँधे सोच की तरह
 
यह देखिए फूल, यह देखिए विष 
 
रक्तरंजित
कांमाध  हेतु सज्जित पर्यंक, अपंग नारीत्व के प्रति अपराध
 
मैं  दुःखी हो गया ,यह देखकर
मेरे अंतर में कई प्रश्न उठे  
क्यों समय उसके प्रति इतना निर्मम बना, जो आखिरी आदमी है  ?
 
मेरी अंगुलियाँ घायल हुई हैं इन खारों में
 
चीखें-चिल्लाहटें मिली-जुली औरतों, आदमियों, बच्चों की
 
भीड़ देखती रही : धूमावृत्त हो गया चिराग
घने अंधकार के काले होंठ उचारते हैं दारुण मृत्यु-गान 
 
– परिचय दास 
Facebook Comments