खिचड़ी दोहावली
बहुत याद आया हमें, अपना गाँव प्रदेश
गन्ने से बनते हुए, गुड़ की सोंधी गन्ध
और जो है तिलकुट की, भीनी भीनी गन्ध
धान कूटतीं औरतें, गाती रहतीं गीत
ओखल मूसल का सदा, रहता है संगीत
दही चूड़ा के पहले, करते हैं स्नान
वहाँ निज हाथों खिचड़ी, हम करते हैं दान
पतंगों से है लगता, आसमान रंगीन
साल भर में आज दिखे, सबसे सुंदर सीन
” डाॅ0 भोला प्रसाद आग्नेय”
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