हरित क्रांति- एक अधूरा सच


हाँ, बिल्कुल हमें यह याद रखना होगा कि बिना किसी योजना के काम करने से 100% असफलता मिलेगी। उत्पादन न करने के साधनों में विफलता का मूल्यांकन समग्र साधनों पर किया जाना चाहिए। कोई भी नीति किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं बनाई जाती है, बल्कि उस युग की समिति को भी यह पता लगाना चाहिए कि वास्तव में क्या होने जा रहा है। बेशक हमने पूर्व हरित क्रांति युग के बारे में अनुभव नहीं किया था और यहां तक कि पारिस्थितिक प्रभाव, स्थानीय नस्लों के संरक्षण, कम लागत वाली देसी प्रौद्योगिकियों के बारे में इसके वास्तविक गंतव्य के प्रति अथवा इसके वास्तविक प्रभाव के बारे में कल्पना भी नहीं की थी। हम अधिक उत्पादन के लिए दौड़े, चाहे वह कैसे भी आ रहा हो। हां, मुझे यकीन है कि अगर मृदा के जैविक कार्बन को बौने जीन आवक, अन्य आनुवंशिक संशोधन इंजीनियरिंग, रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, अन्य रसायनों के असुरक्षित और निरंतर उपयोग से नहीं बनाए रखा जाएगा, तो उत्पादन कम होता जायेगा, जिसमे सुरक्षित खाद्यान का नामोनिशान नही बचा है। बिहार राज्य के नालन्दा जिले में साधारण किसान ने आलू और धान (चावल) के उत्पादन के मामले में चीन का विश्व रिकॉर्ड जैविक खेती करते हुये तोड़ा है। अधिकांश तकनीकों को भुला दिया गया था और अब यह फिर से अपनाकर महसूस किया जा रहा है कि हमने उत्पादन के लिए जो कुछ भी किया है वह केवल गैर-टिकाऊ तरीके से है। जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) भी अब बीटी पेटेंट के अंतिम मामलों की तरह वर्षों की अंतिम खोज का समर्थन कर रही है और आज इसी आधार पर वर्षों से भारतीय कृषि और उपभोक्ताओं पर नजर टिकाये पड़ी बीटी बैंगन जैसी किस्मों की आवक रुकी पड़ी है।

समय की आवश्यकता है कि हम भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी भूमि को कैसे संरक्षित कर सकते हैं वैसे प्रयास अपनायें।
देशी किस्मो का संरक्षण जैसे कि आईसीएआर के एनबीपीजीआर का प्रतिष्ठित संस्थान, पीपीवीएफआरए भी एक अन्य संस्था और अन्य कई बीज बैंक, जैविक खेती अभियान और टिकाऊ खेती प्रयास जो किसानों से स्थानीय किस्मों के संग्रह पंजीकरण और लोकप्रिय बनाने सँग भारतीय खेती की अन्तरात्मा बचाने का पुरजोर प्रयास कर रही है, को प्रोत्साहित और लोकप्रिय बनाया जाये।
अगले स्वस्थ भारत के निर्माण के लिये नीति निर्धारकों और विशेषकर कृषि वैज्ञानिक समुदाय को किसानों के साथ मिलकर एक नया योगदान देना होगा।
डॉ. शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ, विभागाध्यक्ष-उद्यान विज्ञान विभाग
रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय,
रायसेन, मध्यप्रदेश
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