पैना के रणबांकुरों ने नही स्वीकारी पराधीनता
- 31 जुलाई 1857 को अंग्रेजों के छक्के छुडाते हुए गाँव के लगभग 300 बागी और 91 महिलाओं ने अमर किया पैना गाँव का नाम |
देवरिया जनपद के दक्षिणाचल में सरयू नदी के उत्तरी तट पर तीन किलोमीटर की लम्बाई में बसा पैना गाँव अपने गौरवपूर्ण वीरगाथा के लिए सदैव अविस्मरणीय रहेगा |यह वही गाँव है जहाँ के रणबांकुरों ने कभी अंग्रेजों की पराधीनता नही स्वीकारी | स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में इस गाँव की महत्वपूर्ण भूमिका रही है |
जहां चौरी – चौरा काण्ड को याद किया जाता है वही पैना को विस्मृत नही किया जा सकता है |पैना आज देवरिया जनपद का सबसे बड़ा गाँव है , जबकि स्वतंत्रता के पूर्व यह गाँव गोरखपुर को गौरवान्वित करता रहा |
स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में नरहरपुर के राजा हरि प्रसाद सिंह , सतासी स्टेट रुद्रपुर ( देवरिया ) के राजा उदित प्रताप नरायण सिंह ,एवं पैना के वीर जवानों ने कभी अंग्रेजो की हुकूमत नही मानी |पैना में ठाकुर सिंह के नेतृत्व 600 रणबांकुरों ने सेना के रूप में अंग्रेजो से लोहा लेने के लिए तैयार रहतें थे |इसे ठाकुर सिंह की पलटन के नाम से जाना जाता था | इस पलटन ने अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर किया था |
गोरखपुर से पटना एवं गोरखपुर से आजमगढ़ का जलमार्ग इन्होने रोक दिया |इतना ही नही नावों से भेजे जाने वाले राशन एवं खजाने को भी इस सेना लूटा,जिससे अंग्रेज पैना वालों से खार खाएं बैठे थे |नरहरपुर के राजा हरि प्रसाद सिंह एवं सतासी नरेश उदित प्रताप नारायण भी पीछे नही रहे | उनलोगों का भी इसमें विशेष योगदान था | पैना के प्रति कुदृष्टि रखने वाली अंग्रेजी हुकूमत को कई बार मुहं की खानी पड़ी और तब पूरी कमिश्नरी में मार्शल ला घोषित कर दिया गया ,इसी बीच 26 जुलाई 1857 को देशी सैनिको ने सिगौली में विद्रोह कर मेजर होम्स को मार डाला |तत्पश्चात सलेमपुर से नील की कोठी लूट लिया |चूकि पैना की सेना पहले से ही विद्रोही बनी हुई थी ,इसलिए अंग्रेजी सेना ने जल एवं थल मार्ग से 31 जुलाई 1857 को पैना गाँव पर आक्रमण कर दिया |रणबांकुरों ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए , किन्तु सैन्य बल एवं साधनों के अभाव में पैना के वीर सपूत लगभग 300 की सेना शहीद हो गये और अपनी अस्मिता बचाने हेतु इस गाँव की 87 महिलाओं ने एक साथ जल – जौहर ( जल -समाधि ) कर दिया और चार अन्य महिलाओं ने अपने को आग के हवाले कर दिया , जहाँ यह घटना हुई वह स्थान सतीहडा नाम से जाना जाता है |
( कैप्टन विरेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार )