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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 14 Feb 6:05 PM |   514 views

गर्मियों में मूंग की खेती कर मुनाफा कमाएं किसानःप्रो. रवि प्रकाश

बलिया -गर्मियों में विभिन्न दलहनी  फसलों में मूंग की खेती का विशेष स्थान है।  मूंग की खेती के फायदों को देखते हुए *आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं  प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने जहाँ पानी की व्यवस्था हो वहाँ  मूँग की खेती करने की सलाह दी है।
 
प्रो.मौर्य के अनुसार इसकी खेती करने से अतिरिक्त आय, खेतों का खाली समय में सदुपयोग, भूमि की उपजाऊ शक्ति में सुधार, पानी का सदुपयोग आदि के कई फायदे बताए गए है। तथा यह भी बताया कि रबी दलहनी फसलों  में हुए नुकसान की कुछ हदतक भरपाई हो जायेगी। 
 
जलवायु- मूँग मे गर्मी सहन करने की क्षमता अधिक होती है  इसकी वृद्धि के लिये 27-35 सेंटीग्रेट तक तापमान अच्छा रहता है।
 
मृदा एवं खेत की तैयारी-  उपजाऊ एवं दोमट या बलुई दोमट मृदा, जिसका पी.एच मान 6.3 से 7.3 तक हो तथा जल निकास की व्यवस्था हो तो अच्छी होती है।  
 
बुआई का उचित समय- 25 फरवरी से  अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक बुआई अवश्य कर दें । देर से बुआई करने से फूल एवं फलियां गर्म हवा के कारण तथा बर्षा होने से क्षतिग्रस्त  हो सकती है। 
 
उन्नतशील किस्में-  पंत मूंग -2, नरेन्द्र मूंग -1 , मालवीय जाग्रति , सम्राट ,जनप्रिया ,, विराट, मेहा  है। यह किस्में  सिंचित इलाकों में गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। जो 60 से 70 दिनोँ में पककर तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार प्रति एकड़ 4 से 5 कुंतल है।
 
 
बीज की मात्रा ,बीजोपचार एवं दूरी-   गर्मियों में 10 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ में डालना चाहिए। कुड़ों मे 4-5 से .मी. की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 से.मी. तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी.  पर बुआई  करने से जमाव ठीक होता है। मूंग के बीज जनित  रोगों  से बचाव के लिए उपचार हेतु प्रति किलोग्राम बीज में 5  ग्राम ट्राइकोडर्मा  का प्रयोग करे। इसके बाद बुआई के 8-10घंटे पहले  100 ग्राम गुड़ को  आधा लीटर पानी में घोलकर  गर्म कर ले।  ठंडा होने के बाद  मूँग के  राईजोबियम कलचर  एक पैकेट  को गुड़ वाले घोल मे डालकर  मिला ले। तथा उसे  बीजों पर छिड़ककर हाथ से अच्छी तरह से मिला दें। जिससे प्रत्येक दाने पर टीका चिपक जाए। इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर बुआई करनी चाहिए।
 
खाद ए्वं  उर्वरक  प्रबंधन -मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें । समान्यतः 40 किग्रा. डी.ए.पी. 13 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश एवं 50 किग्रा. फास्फोजिप्सम प्रति एकड़ में प्रयोग से उपज मे विशेष बृध्दि होती है। बुआई के समय उर्वरक कूड़ों मे  देनी चाहिए। 
 
सिंचाई – सिंचाई  भूमि के प्रकार, तापमान एवं  हवा की तीब्रता पर निर्भर करती है। 3-4 सिंचाई प्रर्याप्त  होती है,  पहली सिंचाई  बुआई के 20 से 25 दिन के पश्चात करें।  उसके बाद  आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अन्तराल पर  सिंचाई करे। बुआई के 50-55 दिन बाद सिंचाई न करें।
 
खरपतवार प्रबंधन – गर्मी मे खरपतवार कम उगते है फिर भी  बुआई के  क्रांति काल( बुआई के 20-25 दिन पश्चात )  तक  खरपतवार मुक्त फसल रखना आवश्यक  है।   
 
तोड़ाई –जब फलियां पक जाएं तो फलियों की तुड़ाई  कर सकते है। फलियां तोड़ने के बाद फसल को खेत में दबाने से फसल हरी खाद का काम करती है और खेत को मजबूती मिलती है।
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