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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 20 Nov 2020 2:00 PM |   480 views

विकास पर विचारणीय भोजपुरी या पूर्वांचल

उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल की सरकारों ने निर्देश दिया कि इस बार कोरोना से बचाव हेतु लोग छठपर्व अपने-अपने छत पर मनावें। यही निर्देश दिल्ली की आप सरकार ने भी जारी किया तो भोजपुरी अंचल के एक ख्यातिलब्ध गायक व माननीय सांसद आपत्ति कर बैठे कि छठ घाटों पर सफाई करके मनाया जाता है न कि घर में। अब ऐसी विसंगति तो राजनीति की अधोगति है ही।
 
पर भोजपुरी अभिव्यक्ति में उक्त व्यक्तित्व का महान योगदान है, वटवृक्ष की भांति इतना महान कि भोजपुरी भाषा के दायरे में ही सिमट  कर हिन्दी के लिए चुनौती बन कर रह जा रही है, जबकि भोजपुरी क्षेत्र के पहचान, स्वाभिमान, गौरव, विकास और पृथक राज्य के मुद्दे पूर्वांचल की कृत्रिम अवधारणा की ओर खिसका दिये जा रहे हैं। पूर्वांचल वैसे भी भारत के पूर्वी क्षेत्र में नहीं आता। क्षेत्र व प्रदेश के तौर पर भोजांचल, भोजप्रान्त, भोजभूमि जैसे नाम भी तो उतने ही आकर्षक हैं जितना पूर्वांचल शब्द।
 
अब इस क्षेत्र के शुभेच्छुओं और बुद्धिजीवियों के लिए और भी अधिक समझ का मुद्दा है कि भोजपुरी को सिर्फ भाषाई मुद्दा ही बनाए रख यहां के माहौल को कलुषित करते रहना है या इसकी विकास गत आत्मविश्वास के लिए भी उपयोग करना है। महायोगी गोरक्षनाथ, भर्तृहरि और कबीर ने तो भोजपुरी का उपयोग विद्यमान साम्प्रदायिक और जातीय भेदों को निगलने के लिए किया था। भोजपुरी की यह क्षमता तो आज भी ऐसे उपयोग के लिए बनी हुई है।
 
( प्रोफेसर आर पी सिंह, दी द उपाध्याय  गोरखपुर विश्वविद्यालय)
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