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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 6 Nov 2020 5:30 PM |   537 views

( हवा ) ग़ज़ल

बदलतीं फिजाएं कुछ और कह रही हैं
ये कैसी हवा  बेरुखी  बह  रही है |
 
सहमी समा है और सहमा आसमां
गुलशन की रौनक खुद कह रही है
         ये कैसी हवा  बेरुखी  बह  रही है |        
 
चेहरे पर सबके क्यों पर्दे टंगे है

आंखों की अदाएँ सिर्फ लह रही है

ये कैसी हवा  बेरुखी  बह  रही है |
 
कोरोना ने पकड़ी बड़ी- बड़ी मीनें
कुकर्मों के कारन कमां ढह रही है
       ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
 
चकित है सभी जीव सड़कों पे टहलें
अपने इबादत से दु:ख सह रहीं हैं.

      ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |

 
केशव कहाँ है और गदा भीम का
इतनी! कोरोना की क्यूँ गह रही है
      ये कैसी हवा बेरुखी बह रही हैं
      बदलती फिजाएंकुछऔरकह रही हैं |
 
( भीम प्रसाद प्रजापति , देवरिया ) 
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