( हवा ) ग़ज़ल
बदलतीं फिजाएं कुछ और कह रही हैं
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
सहमी समा है और सहमा आसमां
गुलशन की रौनक खुद कह रही है
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
चेहरे पर सबके क्यों पर्दे टंगे है
आंखों की अदाएँ सिर्फ लह रही है
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
कोरोना ने पकड़ी बड़ी- बड़ी मीनें
कुकर्मों के कारन कमां ढह रही है
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
चकित है सभी जीव सड़कों पे टहलें
अपने इबादत से दु:ख सह रहीं हैं.
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही है |
केशव कहाँ है और गदा भीम का
इतनी! कोरोना की क्यूँ गह रही है
ये कैसी हवा बेरुखी बह रही हैं
बदलती फिजाएंकुछऔरकह रही हैं |
( भीम प्रसाद प्रजापति , देवरिया )
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