गांव की कहानी
जहां घर की ईंट से ईंट
आपस में टकराए
चौखट और दरवाजे
इक दूजे को ठुकराए
लहू खेत खलिहान में
बह जाए बन के पानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
जहां बंट गए घर आंगन
दिखते महज दशानन
राम लखन की बात नहीं
सबके सब दुश्मन |
दफ़न करके भाई चारा
करते सब मनमानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
जहां चट्टी और चौराहे
चढ़ा कर अपनी बांहे
आने जाने वालों पर
रखें बक्र निगाहें|
नये उम्र के लड़कों की
सिमटी हड्डी में जवानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
जहां लोफर और लफंगा
नांचे होकर नंगा
करवाए बात बात में
जहां तहां वो दंगा |
जहां नेता बनने की
है यही निशानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
मंदिर और शिवालय
या बच्चों का विद्यालय
दिखते खाली खाली
भीड़ भरा मदिरालय |
जहां बिकता खूब शराब
पीकर करते नादानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
ताल पोखर पट गए
पीपल बरगद कट गए
जिसका दिल चाहा |
वो आकर डट गए
लाचार दिखें खानदानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
होता जब कभी चुनाव
ना कोई कहीं लगाव
बड़े बड़े गुण्डों का ही
लगता रोज पड़ाव |
जखीरा गोला बारूद का
कहीं छुटे आसमानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं।
जब से आई ये आज़ादी
साथ में लाई है बर्बादी
कहां गए वो किस्से
सुनाती जो नानी दादी |
अब तो कान में पड़ते
भद्दे गीत व राजाजानी
ऐसे गांव की कहानी
किस किताब में लिखूं |
( डॉ भोला प्रसाद आग्नेय ,बलिया )
Facebook Comments