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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 21 Jun 2020 1:03 PM |   414 views

मेरे पापा ही मेरे हीरो

हीरो कौन होता है ? वो जिसमें आप आदर्श देखते हों, जिसमे जीवन की सभी संभावनाएं आपको उस जैसा बनने को प्रेरित करती हो।
 
किसी बच्चे से पूछिए आप किस जैसा बनना चाहते हैं! कोई रत्न टाटा बनना चाहेगा, कोई मुकेश अम्बानी, किसी के सपने सचिन जैसा सौम्य बनने में है,वही कोई  बच्चा कह दे मैं अपने पापा जैसा बनूँगा ऐसा  आपने अक्सर बच्चों को कहते सुना होगा  ?
 
 मेरे पापा वो कह नही पाते हैं, कभी मम्मी से कहलवाएँगे कभी घुमा घुमा के पूछेंगे, लम्बी बात नही होती अक्सर हमारी, पर एक कमी तलाशती उनकी निगाहें असल मे कमी निकालने की नही वरन सम्पूर्ण बनाने की राह देखती रहती हैं वरना जीवन मे 11वीं फेल होने वाला इंसान कभी डॉक्टरेट कर खुद पढ़ाने के सपने नही बुन पाता। 
 
बचपन मे जब स्कूल जाता था बीच सड़क में रोक के जितने अंकल खड़े रहते सबके पैर छुलवाते थे 2-4 तो ऐसे भी रहते उस भीड़ में के बस दाँत पीस-पीस के छूने पड़ते। हाँ ये बात थी कि आस पड़ोस के करीब 15-20 गाँव मे शायद ही कोई प्रधान हो जो मुकेश बाबू को न जानता हो, उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में अक्सर किसान इसी नाम से किसी ऑफिसर जो ज्यादा करीब हो को जानते थे- बाबू।
 
किसी सिक्युरिटी गार्ड की बिटिया की शादी हो, किसी लेबर का पिता मर गया हो, किसी के बच्चों के एडमिशन की फीस देनी हो किसी बीमारी की दवा का पैसा न जुट पा रहा हो एक इंसान हमने हर इस जगह दौड़ते देखा जहाँ अपने जीवन के रोल मॉडल को वो देखना चाहता हो। चीनी मिल के बेहद सामान्य से पैकेज में गुजारा करने वाला मध्य वर्गीय परिवार कैसे कैसे इन परेशानियों के साथ खुद का परिवार सम्भालता है ये बखूबी सीखने का आदर्श माहौल मिला हमे। 
 
दुनिया मे विरले लोगों को ही, वो आजादी-जो वो चुनना चाहे और जीवन के हर फैसले में अच्छा बुरा हर इंटेलेक्चुअल ज्ञान खुद पर बीती समझाकर बढाने का वाले पिता मिलते हैं, पीछे पलट कर यादों के सफरनामे में जाऊँगा तो और आँसू निकलेंगे। फीलिंग्स के सूत्रधार ये आँसू हमने अपनी आँखोँ में उमड़ते और आपकी आँखों मे छिपते देखें हैं पापा।
 

बस कानों ने सुने नही के ये कष्ट है, हाँ ये जरूर देखा कि नारियल सा बाहर से कड़ा और अंदर से नरम दिल ये इंसान हमे जीवन छाया देने में घुला, खुद के कष्टों में सिर्फ उस पौधे की एक नर्सरी सींचने में लगा रह गया है जिसपर उसे विश्वास है कि कभी वट वृक्ष बन ये अन्य पौधों को भी छाँव देगा। 

( डॉ .शुभम कुमार कुलश्रेष्ठ , असिस्टेंट प्रो. रवीन्द्रनाथ  टैगोर यूनिवर्सिटी ,रायसेन ) 
 
 
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