मंगलाचरण जिन्दगी का
शुरू करते ही मंगलाचरण जिन्दगी का
किया दुशासन ने चीरहरण जिन्दगी का
खो गया था मै तो इंसानों की भीड़ में
पढा दिया पशुओं ने व्याकरण जिन्दगी का
सफेदी बाल की देखकर सोचा मैंने
कब तलक होगा अब जागरण जिन्दगी का
साए से भी अपने डर लगने लगता है
भ्रष्ट हो जायेगा जब आचरण जिन्दगी का
दाग दामन पर लग जाता चाहे जैसे भी
नहीं हो पाता नवीनीकरण जिन्दगी का
गम जलाने के लिए आग को पीना नही
वरना शुरू हो जायेगा क्षरण जिन्दगी का
पढ़ लेता पन्ने पलट कर बीते हुए पल
काश !होता कागज़ पर मुद्रण जिन्दगी का
सजा दो हरेक लम्हे मुस्कुराहटों से
होता है महज एक संस्करण जिन्दगी का
करतें हैं आज हर मोड़ पर ‘ आग्नेय ‘
अपने आप ही अपहरण जिन्दगी का
( डॉ भोला प्रसाद ‘ आग्नेय ‘ बलिया )
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