पूर्वी उत्तर प्रदेश में लीची उत्पादन की अपार संभावनाए हैं – रवि प्रकाश
बलिया / सोहाव- लीची एक रसदार फल है जो गर्मी के मौसम मे खाकर आन्नद लिया जाता है। मुजफ्फरपुर बिहार लीची के लिए देश मे प्रसिद्ध है। पूर्वी उतर प्रदेश मे भी छिटपुट उत्पादन प्रारम्भ हो चुका है।
आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र सोहाँव बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि बलिया जनपद में भी कुछ किसानों ने लीची का बाग लगाया है जो अच्छे परिणाम दे रहे हैं ।अधिक उत्पादन के कारण औधोनिक फसलें, खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा अधिक लाभकारी पाया जा रहा है।
आज कल खेती की विविधिता लाने के लिए इनकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है ।स्वास्थ्य की दृष्टि से, भोजन की पौष्टिकता बढ़ाने, वातावरण के सौन्दर्यीकरण एवं शुद्धि करण मे इन फसलों की अहम भूमिका है ।लीची उत्पादन के लिए उपजाऊ मिट्टी होनी चाहिए ,जहां पानी का निकास हो।
उन्नत किस्मे- इनकी मुख्य किस्में देशी, शाही ,अर्ली बेदाना, देहरा रोज ,पूर्वी, रोज सेंटेड है, जो मई के अंत तक पकती है ।कसवा, सबौर बेदाना, चाईना,लेट बेदाना जून के प्रारंभ में पकने वाली प्रजातियाँ है ।तथा कसैलिया,लौगिया, स्वर्ण रूपा, सबौरमधु, सबौर प्रिया आदि जून के मध्य में पकने वाली प्रजातियां हैं।
लगाने की विधि एवं समय -उपजाऊ मिट्टी में 10×10 मीटर ,सघन बागवानी हेतु 5 ×5 मीटर की दूरी पर 1×1×1 मीटर आकार के गड्ढा अप्रैल- मई के महीने में खोद देते हैं । समान्य दूरी पर 100 तथा संघन मे 400 पौधे प्रति हैकटेयर लगते है।जून के आरंभ में ही 40 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, अरण्डी की खली 2 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 1 किलोग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 250 ग्राम एवं विवेरिया बेसियाना 10 ग्राम ,मिट्टी में मिला कर 1 फीट ऊंचाई तक गड्ढे को भर देते हैं। जिससे बरसात होने पर गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाये ।
रोपण का समय- जुलाई-अगस्त में बरसात होने पर गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाएगी। उसके बाद पौधे की पिंडी के आकार का गड्ढा खोद कर उसमे पौध लगाकर अच्छी तरह दबा दें। तथा पानी दे दे। सिंचाई- बृक्षों की अक्टूबर से फलने तक यानि मार्च तक सिंचाई ना करें। फल के दाने वृक्षों पर स्पष्ट रूप से दिख जाए तो सिंचाई करें ।अप्रैल-मई माह में प्रति सप्ताह सिंचाई आवश्यक है।
खाद डालने का समय- फलों की तुड़ाई के उपरांत जून के अंत या जुलाई में 45 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 2 किलोग्राम यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट 1.40 किलोग्राम ,म्यूरेट आफ पोटाश 1.0किग्रा. एवं 37 ग्राम बोरेक्स प्रति पौधा डाले। तथा फल लग जाने के बाद अप्रैल में 15 किग्रा. गोबर की सडी़ खाद ,660 ग्राम यूरिया, 470 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट,400 ग्राम म्यरेटऑफ पोटाश तथा 13 ग्राम बोरेक्स प्रति पौधे में डालें। फल जब मीठा हो जाए तभी तोडा़ई करें ।उपज -5 वर्ष बाद प्रति पौधा 100 से 120 किलोग्राम फल प्राप्त होती है।
सहफसल- लीची के बाग मे 4 वर्षों तक सब्जियों, तिलहनी, दलहनी फसलो की खेती बीच- बीच मे कर सकते हैं।
पौध प्राप्ति स्थल- लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर , कृषि विज्ञान केंद्र भगवानपुर सिवान से प्राप्त कर सकते हैं ।
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