फर्टिगेशन
कृषि के क्षेत्र में आधारभूत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए नित्य नवीन कृषि प्रणालियो का आविष्कार हो रहा है | फर्टिगेशन भी एक ऐसी ही तकनीकि है ,जिसमे पौधों की प्राथमिक आवश्यक तत्वों की पूर्ति के लिए घुलनशील / तरल उर्वरक को टपक /स्प्रिकलर सिचाई पद्धति द्वारा सीधा जड़ क्षेत्र में दिया जाता है | यह सभी प्रकार की मिटटी में सभी प्रकार सब्जियों एवं फूलों तथा कुछ फूलों में दिया जा सकता है |उर्वरको का पोषक मान , उर्वरको की मिटटी में चलनता, मिटटी की लवणता , सिचाई जल का प्रकार , पौधों की कुल आवश्यकता तथा भूमि का पी . एच . फर्टिगेशन प्रभाव डालतें हैं |
वैज्ञानिक विधि से फसल की अवस्था , मौसम , मिट्टी तथा पानी को ध्यान में रखते हुए कृषि करने से पैदावार व गुणवत्ता को बढाया जा सकता है |कुछ कम समयावधि वाली फसलें जैसे- टमाटर , शिमला मिर्च , गेंदा , डहेलिया इत्यादि फसलों में फर्टिगेशन मुख्य प्रभाव डालतें हैं |
फर्टिगेशन के लाभ –
1 -पोषक तत्वों को सीधा व समान रूप से जड़ो में दिया जा सकता है |
2 – इसे पारम्परिक तरीकों से उर्वरक डालने की अपेक्षा 25 – 50 %उर्वरक की बचत होती है |
3 – आवश्यकतानुसार कभी भी उर्वरक पौधों को दिए जा सकतें है |
4 – पौधों द्वारा फर्टिगेशन से उर्वरक दिए जाने पर शीघ्र पोषक तत्वों का ग्र हण
5 – उर्वरक ,ईंधन / उर्जा ,श्रम शक्ति ,समय तथा यंत्रो की बचत |
6 – थोडा – थोडा तथा बार – बार उर्वरक , पौधों की किसी भी अवस्था में आसानी पूर्वक देना |
7 – उर्वरक का लीचिंग द्वारा भू जल में मिश्रण न होना |
8 – उर्वरक को भूमि में मिलाने की आवश्यकता नही |
9 – पौधों की एनी विधियों की अपेक्षा अधिक बढ़वार तथा उपज |
फर्टिगेशन के नुकसान –
1 – यदि सिचाई प्रणाली का पानी समान रूप से वितरित न हो तो उर्वरक भी असमान रूप से मिलेगा |
2 – कम घुलनशील या गलत उर्वरक प्रयोग करने से टपक सिचाई प्रणाली का बंद होना |
फर्टिगेशन करते समय सावधानियां –
पानी की गुणवत्ता उर्वरक
उर्वरक की घुलनशीलता उर्वरकों की समरूपता
मिट्टी का पी . एच . मिटटी में उपलब्ध पोषक तत्व
फर्टिगेशन देने का समय फर्टिगेशन करने की प्रणाली
( डॉ . शुभम कुलश्रेष्ठ ,असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ,रवीन्द्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी ,रायसेन मध्यप्रदेश )