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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 10 Mar 2020 8:20 AM |   2323 views

बसंत महोत्सव ( होली )

बसंत महोत्सव का ही दूसरा नाम होली है |यह त्यौहार मूल रूप से आर्यों का त्यौहार है |आप सभी जानते हैं कि आर्यों की मातृभूमि मध्य एशिया थी |यह क्षेत्र इतना ठण्ड था कि सर्दियों में लोग अपने घरो से बाहर नही निकल सकते थे |वे लोग लम्बे समय तक घरो में ही रहते थे |बसंत के आगमन का मतलब था सर्दियों की  विदाई |आर्य लोग ठंड क्षेत्र से भारत आये थे और सर्दी समाप्त हो जाने के बाद बड़े हर्षोल्लास के साथ मिलित भाव से बसंत उत्सव का आयोजन करते थे |

पौराणिक कथाओं के मुताबिक होली का पर्व हिरण्यकश्यप से जुड़ा हुआ है। हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के भक्त थे। लेकिन, उनके पिता इस भक्ती से खुश नहीं थे। हिरण्यकश्यप कई प्रयास के बाद भी प्रह्लाद भगवान ने विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद भगवान को मारने के लिए योजना बनाई। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। इसमें होलिका जलकर भस्म हो गई, लेकिन भक्त प्रह्लाद को आंच तक नहीं आई ।इसके बाद होली मनाने की परंपरा शुरू हुई ।

आज भी उत्तर भारत में विशेष रूप से पंजाब , बिहार और उत्तर प्रदेश में होली का त्यौहार मनाया जाता है |इसी दिन बंगाल में श्रीकृष्ण की ढोलयात्रा पर्व मनाया जाता है |इस पर्व का प्रारंभ महाप्रभु चैतन्य के द्वारा आज से 500 वर्ष पहले किया गया था |

होली रंगों का त्यौहार है |संस्कृत में दो शब्द हैं – वर्ग और रंग |दोनों शब्दों के अर्थ लगभग एक ही है किन्तु ये पूर्णतया समानार्थक शब्द नही है |इनके अर्थ में थोड़ी भिन्नता है |रंगों के त्यौहार के पीछे ‘ वैष्णव तंत्र ‘ का तथ्य छिपा हुआ है |

इस  ब्रह्माण्ड के प्रत्येक अभिव्यक्ति का अपना छंद है , अपना तरंग है,अपनी ध्वनियाँ हैं और अपना रंग है |इसी प्रकार सबकी अपनी अनुकृतियां है और संरचनाएं है  |

                            ( नरसिंह )  

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