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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 11 Nov 2025 8:26 PM |   128 views

नालंदा में संपन्न हुई सोलहवीं सारिपुत्त शांति यात्रा

नव नालंदा महाविहार, नालंदा द्वारा आयोजित सोलहवीं सारिपुत्त शांति यात्रा आज गिरियक, राजगीर और नालंदा होते हुए संपन्न हुई। इस यात्रा में नव नालंदा महाविहार परिवार के सभी संकाय सदस्य, गैर शैक्षणिक समुदाय , छात्र-छात्राएँ, अनुसंधानार्थी तथा स्थानीय नागरिकों ने भाग लिया।
 
इस अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में हिंदी विभाग के प्रोफेसर परिचय दास ने “सारिपुत्त: करुणा में डूबा विवेक” विषय पर अपना विचारोत्तेजक व्याख्यान प्रस्तुत किया।
 
प्रो. परिचय दास ने अपने संबोधन में कहा कि सारिपुत्त बुद्ध के करुणा-आधारित दर्शन के विवेकपूर्ण प्रतिरूप हैं। उन्होंने कहा कि “नालंदा की पावन भूमि पर जन्मा वह बालक, जिसे हम सारिपुत्त कहते हैं, केवल एक शिष्य नहीं बल्कि करुणा और तर्क के सेतु का निर्माण करने वाला महापुरुष था।”उन्होंने यह भी कहा कि “सारिपुत्त का विवेक बुद्ध की करुणा का ही रूपांतर है — जहाँ बुद्ध का मौन था, वहाँ सारिपुत्त ने शब्द दिए; जहाँ बुद्ध का वचन था, वहाँ सारिपुत्त ने उसका अर्थ खोला।”
 
बुद्ध के मौन का तर्क की गहन व्याख्या सारिपुत्त ने की। उन्होंने करुणा व मनुष्यता को जीवन का आधार बनाया। उन्होंने कहा था कि संसार का एक भी मनुष्य यदि दुःखी है तो हमारा ज्ञान अधूरा है।
 
नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि सारिपुत्त के माध्यम से हम करुणा की उस परंपरा को पुनः स्मरण करते हैं जो नालंदा के प्राचीन विवेक की आत्मा है। उन्होंने कहा कि सारिपुत्त का जीवन हमें यह सिखाता है कि बौद्ध चिंतन केवल ध्यान नहीं बल्कि आत्मबोध की सामाजिक प्रक्रिया है। उन्होंने आगे कहा कि नालंदा का हर शिलाखंड सारिपुत्त की स्मृति से स्पंदित है।
 
कुलपति ने इस अवसर पर कहा — “हमारे विश्वविद्यालय का दायित्व है कि हम इस करुणा-विवेक की परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पुनर्जीवित करें। सारिपुत्त केवल इतिहास नहीं, आज के मानव की भी आवश्यकता हैं।”
 
इस अवसर पर प्रो. विश्वजीत कुमार ने कहा कि “सारिपुत्त का नाम नालंदा की चेतना में धड़कता है। करुणा, विवेक और संवाद उनकी त्रिवेणी है, जिससे मानवता आज भी प्रेरणा पाती है।”
 
प्रो. विनोद चौधरी ने कहा कि “सारिपुत्त का जीवन नैतिक अनुशासन का पाठ है — उन्होंने दिखाया कि ज्ञान का चरम रूप विनम्रता में निहित है।
 
प्रो. रूबी कुमारी ने कहा कि “सारिपुत्त स्त्री और पुरुष, गुरु और शिष्य के बीच के भेद को मिटाकर करुणा को मानवता का केंद्र बनाते हैं।”
 
प्रो. विजय कर्ण ने कहा कि “सारिपुत्त की दृष्टि नालंदा की आत्मा में आज भी प्रवाहित है — उन्होंने हमें यह सिखाया कि विवेक का अर्थ तटस्थता नहीं, बल्कि सक्रिय करुणा है।”
 
कार्यक्रम का संचालन प्रो. राणा पुरुषोत्तम कुमार ने किया। उन्होंने कहा कि सारिपुत्त की स्मृति में यह यात्रा केवल श्रद्धा का आयोजन नहीं, बल्कि आत्मपरिष्कार का भी अवसर है। उन्होंने यह भी कहा कि “जब हम बुद्ध की करुणा और सारिपुत्त के विवेक को एक साथ अनुभव करते हैं, तो शिक्षा अपनी सर्वोच्च स्थिति में पहुँचती है।” उनके संचालन ने पूरे कार्यक्रम को संयमित, शालीन और गहन बना दिया।
 
धन्यवाद ज्ञापन बौद्ध अध्ययन विभाग के अध्यक्ष प्रो. मुकेश वर्मा ने किया। उन्होंने कहा कि “यह कार्यक्रम नालंदा की प्राचीन परंपरा और वर्तमान पीढ़ी के बीच सेतु का कार्य कर रहा है। उन्होंने प्रो. परिचय दास के प्रेरक वक्तव्य, कुलपति के आध्यात्मिक मार्गदर्शन तथा सभी संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी के लिए आभार व्यक्त किया।
 
प्रो. वर्मा ने कहा कि “सारिपुत्त का नाम नालंदा के भविष्य का भी मार्गदर्शक रहेगा।”
 
नालंदा की प्राचीन भूमि पर जब भी करुणा और विवेक का नाम लिया जाएगा, सारिपुत्त का स्मरण होगा | आज, प्रो. परिचय दास के शब्दों में, वही स्मृति एक बार फिर जीवित हुई।
 
 
 
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