अहंकार
खुद के भीतर झांको
भूले से भी कभी नहीं
कमतर किसी को आंको ।
चार दिनों का जीवन है
चार दिनों की देह
लालच की जंजीरों से
कभी रखो ना नेह ।
वसन लोभ का त्याग कर
सच का थामो हाथ
कुछ भी साथ ना जाएगा
बस! कलंक चढ़ेगा माथ ।
मिली सफलता देखकर
करना नहीं घमंड
जिस दिन किया घमंड फिर
जीवन में होगा प्रचंड ।
स्वच्छ हृदय छलना नहीं
लग जाएगी हाय
चलती- फिरती जिंदगी में
गाढ़ी लगेगी काय (कजली) ।
वक्त इशारा दे रहा
समझो उसकी बात
वरणा फिर पछताओगे
ना देगा कोई साथ ।
अहंकार के वश हुई
रावण की बुद्धि भ्रष्ट
स्वच्छ हृदय की सीता को छल
सब कुछ कर लिया नष्ट ।
संभलो उसे भी देखकर
त्यागो तुम अभिमान
वरणा देर हो जाएगी
तेरी मिट जाएगी शान ” ।
डॉ संजुला सिंह “संजू”
जमशेदपुर (झारखंड )
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