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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 26 Jul 2025 6:20 PM |   436 views

सेम की खेती कैसे करें किसान भाई

सेम एक ठंडी जलवायु वाली फसल है,इसकी मुलायम फलियों की सब्जी या भर्ता बनाया जाता है। सब्जी अकेले या आलू के साथ मिला कर बनायी जाती है। फलियों से स्वादिष्ट आचार भी बनाया जा सकता है। फलियों में प्रोटीन, खनिज तत्व ,कार्बोहाइड्रेट्स तथा रेशा प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त विटामिन्स बी, सी,आयरन, कैल्शियम, सोडियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सल्फर इत्यादि भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है।
 
परिपक्व बीजों में विशेषकर काले रंग वाले बीज में ट्रिप्सिन नामक अवरोधक पदार्थ होता है जो उबालने पर समाप्त हो जाता है और जल में घुलनशील विषैला पदार्थ निकल जाता है। अतः बीजो को उबालकर ही खाना चाहिए।। सेम की सब्जी का लगातार सेवन नही करना चाहिए। ज्यादा सेवन हानिकारक होता है।
 

मृदा- इसके लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है ,सेम की खेती के लिए उचित जल निकासी और 6.0 से 7.5 के बीच पीएच स्तर वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है. 

18 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान सेम की खेती के लिए उपयुक्त है। 
 
सेम की कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं:- काशी हरितिमा, काशी खुशहाल, काशी शीतल, काशी बौनी सेम -3, काशी बौनी सेम -9 ,पूसा सेम-2,पूसा सेम-3, जवाहर सेम-53,जवाहर सेम-79, रजनी, अर्का विजय एवं अर्का जय है। बुआई के 55-60 दिनों उपरांत पुष्पन प्रारंभ हो जाता है।तथा 70-75 दिनों में फलियां खाने योग्य हो जाती है। प्रति हैक्टेयर में 70- 125 कुन्टल उत्पादन होता है।
 
सिंचाई: खेत में नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करना आवश्यक है। 
 
बुवाई का समय: सेम की बुआई का सबसे उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त का महीना है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 100 सेमी. पौध से पौध की दूरी 75 सेमी. रखते है। 
 
खाद एवं उर्वरक :
बुवाई से पहले खेत में 250 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद भूमि की तैयारी के समय खेत में मिला देना चाहिए।इसके अतिरिक्त तत्व के रुप में मृदा परीक्षण के आधार पर 20-30 किग्रा. नत्रजन, 40-50 किग्रा. फास्फोरस तथा 40-50 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेअर की दर से देना आवश्यक है। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बीज बुआई के समय खेत में प्रयोग करें ।तथा नत्रजन की शेष मात्रा को दो बराबर भागों में बांटकर 20-25 एवं 35-40 दिनों उपरांत टाप ड्रेसिंग करना चाहिए। 
 
रोग और कीट प्रबंधन: 
सेम की फसल में लगने वाले रोगों और कीटों से बचाव के लिए उचित उपाय करना चाहिए।
 
तोड़ाई:
जब सेम की फलियाँ पूरी तरह से विकसित हो जाएं और कोमल हों, तो तोडा़ई करनी चाहिए।
 
सेम की खेती से लाभ:
सेम की फसल कम समय में तैयार हो जाती है।
यह एक लाभदायक फसल है और किसानों को अच्छी कमाई दे सकती है।
सेम की खेती में कम लागत आती है|
सिंचाई की भी कम आवश्यकता होती है।
 
सेम की खेती के लिए कुछ अतिरिक्त सुझाव:
बीजों को कवकनाशी से उपचारित करके बोना चाहिए।
खरपतवारों को नियंत्रित करना चाहिए। 
मचान बनाकर सेम की बेलों को ऊपर चढ़ाना चाहिए। 
फसल की नियमित निगरानी करनी चाहिए और रोगों और कीटों के लक्षणों को पहचानकर तुरंत उपाय करना चाहिए।
 
–  प्रो रवि प्रकाश मौर्य (सेवानिवृत्त / वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष )निदेशक प्रसार्ड ट्रस्ट
 
 
 
 
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