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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 7 May 2025 6:05 PM |   346 views

” सिंदूर का बदला”

 
 
आंख खोलकर देखो दरिंदों 
  दुर्दिन तेरा आ गया ,
बहुत हंसे थे उस दिन, 
 मातम,आज तेरे घर छा गया ।
 
कमजोर मान सिंदूर को मेरे 
तुमने गोलियों से भून डाला,
आज वही सिंदूर की ताकत
तुम सबको नर्क में दे डाला ।
 
बचा नहीं कोई तेरे घर में
अंतिम संस्कार भी कर पाए,
फिरते थे बड़े लिए कलेजा
देख आज तुम (सब )थर्राए ।
 
अपनी ही करतूत के कारण
आज अपनी जान गंवा बैठे,
हल्के में समझे थे हमको 
हमारी सिंदूर मिटा बैठे ??
 
कल तक उछल रहे थे तुम सब
आज कहां तुम गुम हो गए ,
जाकर छुपे चूहे के बिल में
होंठ भी तेरे सिल से गए ।
 
समझाया था बहुत तुझे पर
बात समझ ना पाए तुम,
झूठे शेर की खाल पहन 
हमसे टकराने आए थे तुम ?
 
देखो अपनी आंख खोल
क्या हश्र किया हमने तेरा,
तेरे ही घर में घुस कर तेरे
 मंजिल को राख किया ।
 
अभी तो थोड़ा किया है हमने
ज्यादा करना तो बाकी है,
नामो निशां मिटाएंगे तेरा
तब समझोगे हम क्या हैं ?
 
जो भी बचे हो निकलो घर से
आ जाओ मैदान में,
हम ललकार रहे हैं तुझ को
आओ “सिंदुर” के संग्राम में ।
 
“सिंदूर” का पूरा लेंगे बदला 
   युद्ध के मैदान में’
आ जाओ तुम सुनो भेड़ियों
 “सिंदूर “के संग्राम में ।
 
कहीं भी छुप लो ढूंढ ही लेंगे
हम इतने बलशाली हैं,
चीरेंगे तेरा सीना हम 
देश पे मिटने वाले हैं ।
 
वीर सपूत हैं देश के हम सब
तुम्हरे जैसे ना कायर हैं ,
करते हैं हम वार सामने
चाहे जितने हम घायल हैं ।
 
आज भी वार किया तेरे आगे
पीछे से ना किया कभी,
हमरी करनी देख जगत के
आनंदित हैं लोग सभी” । ।
 
डॉo संजुला सिंह “संजू”
जमशेदपुर (झारखंड )
 
 
 
 
 
 
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