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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 5 Dec 2024 4:41 PM |   667 views

हर क्षेत्र और हर भाषा अपने आप में एक अलग साहित्यिक परंपरा को समेटे हुए है-परिचय दास

सूरत स्थित वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया| जिसमें प्रतिष्ठित निबंधकार, कवि और आलोचक प्रो. रवींद्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ ने भारतीय साहित्य, रचनाशीलता व अनुवाद विषय पर गहन विचार प्रस्तुत किए।
 
प्रो. श्रीवास्तव, जो नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय, नालंदा के आचार्य हैं, ने अपने व्याख्यान में भारतीय साहित्य के विविध पहलुओं, उसकी रचनात्मकता की अनूठी विशेषताओं और अनुवाद की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की।
 

 

भारतीय साहित्य की विविधता और समृद्धि पर विचार –

 
परिचय दास ने अपने व्याख्यान की शुरुआत भारतीय साहित्य की बहुभाषिकता और सांस्कृतिक विविधता से की। उन्होंने कहा कि भारत में हर क्षेत्र और हर भाषा अपने आप में एक अलग साहित्यिक परंपरा को समेटे हुए है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय साहित्य केवल अलग-अलग भाषाओं में रचा गया साहित्य नहीं है बल्कि यह एक ऐसा बहुआयामी परिदृश्य है जो विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करता है। उन्होंने तुलसीदास, शिल्पकार साहित्य और स्त्रीपरक लेखन का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे साहित्य हर युग और समाज की सच्चाई को सामने लाता है।
 
 रचनात्मकता की परिभाषा और उसकी भूमिका- 
 
रचनात्मकता पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल नई चीजें गढ़ने का नाम नहीं है, बल्कि यह पुरानी चीजों को नए दृष्टिकोण से देखने की क्षमता भी है। उन्होंने साहित्य में रचनात्मकता व कविता का उल्लेख किया जो सामाजिक बदलाव की प्रेरणा देती हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य समाज के मूल्यों और विचारधाराओं को प्रतिबिंबित करता है और रचनात्मकता के बिना यह प्रक्रिया अधूरी रहती है।
 
 अनुवाद: एक रचनात्मक प्रक्रिया- 
 
अनुवाद के महत्त्व पर विस्तार से बोलते हुए उन्होंने कहा कि अनुवाद केवल शब्दों का नहीं, बल्कि भावनाओं, संवेदनाओं और सांस्कृतिक अनुभवों का हस्तांतरण है। उन्होंने कहा कि अनुवाद के माध्यम से हम एक भाषा और संस्कृति की समृद्धि को दूसरी भाषा के पाठकों तक पहुंचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, उन्होंने बताया कि कैसे गुजराती, हिन्दी , भोजपुरी, कन्नड़, संस्कृत, तमिल, प्राचीन बांग्ला आदि साहित्यों के अनुवाद ने पूरे भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। परिचय दास ने  साहित्यिक अनुवाद की कला का संदर्भ देते हुए अनुवाद की जटिलताओं और उसकी रचनात्मक प्रक्रिया पर प्रकाश डाला।
 
 समकालीन साहित्य और अनुवाद की चुनौतियाँ –
 
उन्होंने समकालीन साहित्य की चुनौतियों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज के समय में अनुवाद केवल साहित्यिक पाठों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक सांस्कृतिक संवाद का माध्यम बन चुका है। अनुवादकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे मूल रचना की आत्मा को बनाए रखते हुए इसे दूसरी भाषा के पाठकों के लिए प्रासंगिक बना सकें।
 
इस संदर्भ में उन्होंने अज्ञेय, उमाशंकर जोशी, राजेंद्र शाह, श्रीकांत जोशी, पन्ना लाल पटेल , भोला भाई पटेल , सीताकान्त महापात्र, यू आर अनंत मूर्ति, मीराबाई, तुलसी दास, कबीर आदि  की रचनाओं की सर्जना प्रक्रिया व अनुवाद की चर्चा की।
 
अपने व्याख्यान के अंत में परिचय दास ने शोधार्थियों और विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया कि वे साहित्य और अनुवाद के क्षेत्र में नए प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि साहित्य और अनुवाद के माध्यम से न केवल हमें अपने इतिहास और परंपराओं को समझने का मौका मिलता है बल्कि यह भविष्य के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोलता है।
 
कार्यक्रम में उपस्थित विद्यार्थियों और प्राध्यापकों ने परिचय दास के व्याख्यान को अत्यंत प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक बताया। उन्होंने कहा कि  परिचय दास जी ने साहित्य और अनुवाद के बीच के अंतर्संबंध को स्पष्ट किया।
 
व्याख्यान के माध्यम से विभिन्न भारतीय भाषाओं के आपसी संवाद और समरसता की चर्चा हुई। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम न मानकर एक सांस्कृतिक संवाद का पुल बताया। परिचय दास ने भारतीय भाषाओं के साहित्य में अंतर्निहित एकता और उनके बीच अनुवाद के माध्यम से विकसित हो रही रचनात्मकता पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि अनुवाद सिर्फ भाषायी परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभवों का भी हस्तांतरण करता है।
 
कार्यक्रम का आरंभ हिंदी विभाग की प्राध्यापक डॉ. ज्योति सिंह के स्वागत- भाषण से हुआ। उन्होंने परिचय दास का परिचय कराते हुए उनके साहित्यिक योगदान की प्रशंसा की और भारतीय साहित्य के वर्तमान परिदृश्य पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और विचारधाराओं का एक महासागर है, और ऐसे विचारशील विद्वानों के व्याख्यान से इसकी गहराई को समझने में मदद मिलती है।
 
इसके बाद विभाग के संयोजक डॉ. भरत भाई ठाकोर ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि परिचय दास जैसे विद्वानों के साथ संवाद विभाग के छात्रों और शोधार्थियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। उन्होंने इस आयोजन को संभव बनाने में सभी का आभार व्यक्त किया और कहा कि ऐसे कार्यक्रम भविष्य में भी जारी रहेंगे।
 
कार्यक्रम में पूर्व संयोजक डॉ. मुकेश भाई वसावा भी उपस्थित थे, जिन्होंने अपने समय में विभाग के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डॉ. अर्चना बेन पटेल, डॉ. शुक्ल और अन्य प्राध्यापकगण ने भी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। विभिन्न विभागों के प्राध्यापक, शोध छात्र और परास्नातक विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे, जिन्होंने परिचय दास के व्याख्यान को बड़े ध्यान से सुना और उसे अत्यंत प्रेरणादायक पाया।
 
कार्यक्रम के अंत में विभाग संयोजक डॉ. भरत भाई ठाकोर ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि परिचय दास का यह व्याख्यान साहित्य के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए नई दिशाओं को खोलने वाला साबित होगा। उनके विचारों ने न केवल साहित्य की गहरी समझ प्रदान की बल्कि साहित्यिक अनुवाद की प्रक्रिया को भी बेहतर तरीके से समझाया।
 
इस व्याख्यान ने विद्यार्थियों और प्राध्यापकों को भारतीय साहित्य की व्यापकता और उसकी गहनता से परिचित कराया। इसने यह भी स्पष्ट किया कि कैसे अनुवाद रचनात्मकता के नए द्वार खोलता है और साहित्य को अधिक समृद्ध बनाता है।
 
कार्यक्रम की सफलता ने यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में भी इस तरह के शैक्षणिक आयोजनों की परंपरा को कायम रखा जाएगा।
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