वृक्षारोपण
(इतराती हुई) हाँ, दीदी मेरा तो ऐसा ही है। बड़ा बिज़ी शेड्यूल रहता है। आज यहाँ, कल वहाँ, परसो वहाँ बोई जाती रहती हूँ। अभी अभी एक
वृक्षारोपण कार्यक्रम में शिरकत कर बोई गई हूँ।
पता है ? बड़ी बड़ी हस्तियों के साथ बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूम के आ रही हूँ।
अच्छा?
हाँ बड़ा मज़ा आया मेरी सभी यूकेलिप्टस सहेलियों को। पहले हमको नर्सरी से उखाड़ा गया। फिर थैलियों में भर भर के चौराहे चौराहे घुमाते प्रचार फेरी कराते हमको यहाँ लाया गया।
हाय तब तो तुम बहुत मुरझा गई होंगी?
मुरझाए मेरा दुश्मन ‘ताड़’,जो दूर से दिन रात मुझे ताड़ता रहता है। (ही ही ही)
मुझे तो मंत्री जी ने बड़े प्रेम से स्पा दिया। मुझे बड़े स्वैग से गाड़ा,फिर मिट्टी से मेरी त्वचा का रंग निखारा गया और बाद में वॉटरिंग कैन से हौले हौले शॉवर देकर मेरी थकान दूर की गई। मैं एक अकेली और मेरी खिदमत में लगे सैकड़ों समाज सेवी (ही ही ही) फोटो सेशन के बाद थोड़ी थकान तो हो ही जाती है, यू नो।
पर हाय! तुम बताओ नीम बहिन तुम्हारी ऐसी दुर्गति किसने बनाई कि न ज़मीन के अंदर की हो,न बाहर की?
तुम्हारी त्वचा से तुम्हारी उम्र का साफ़ पता चल रहा,इसी उम्र में 80 साल की बुढ़िया लग रही हो।
का करें बहिन देश हित में ई नेता लोग जो न करें
1001 पौधे लगावे का बीड़ा था,पौधा खरीद न पाए,कम पड़ि गवा अउर गिनती पूरा करने की जिम्मेदारी में, हमही को अकेले पचीसन बार उखाड़े फिर गाड़े,उखाड़े फिर गाड़े….
कभी ई गाड़े कभी उ…उखड़, गड़ के मेरी त्वचा और मेरी हड्डियां दुनो का कचूमर निकल गया। मेरी कमर में बल पड़ गए लकड़ी का रॉड लगा है तब भी सीधी न हो पा रही।
अउर जौन तुम हर फोटो में अलग अलग नेता-समाजसेवी के संग एक नीम पौधी देखी रही न??
हाँ हाँ।!
उ हर फ़ोटो में हमही रहे,, जो कल एक ही समय में अलग -अलग जगह अलग-अलग अवतार में नजर लाये गए।
(ही ही ही) ये तो बड़ा ज़ुल्म हुआ। दीदी तुम्हारे संग।
सही कही।
पर एक हम ही नाही हैं जुल्म के शिकार। तुमका पता है? उ ‘अशोक’ बाबू है न उ अपना बचपन का साथी जो नर्सरी में हमसे चार जमात आगे पढ़ता रहा??
हाँ हाँ।
उ पिछले जनम में रावण के वाटिका में भी इससे अधिक सुखी रहा होगा। बिचारे की ई हालत हुई कि पूछो मत
समाज सेवियन के आपसी रंजिश में मारा गया।
कैसे?
‘इनका दल’ वाले अशोक को परिवार समेत पार्क में लगा गए,, फिर ‘उनका दल’ वाले आये,कहने लगव ई तो हमरा अड्डा है पौधरोपण का, उ लोग काहे कब्जियाये इस निफूले को….
बस अशोक बाबू की गर्दन मुट्ठी में पकड़े अउर उखाड़ फेंके सड़क पर सामने से एक कार आ रही थी और….
बाकी उसी गड्ढे में अब गुलमोहर अपना गुल ख़िला रहा है।
— वंदना गुप्ता
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